रूस की पुनर्यात्रा | Ruse Ki Punaryatra

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Ruse Ki Punaryatra by लुई फ़िशर - Lui Phisherश्री श्याम - Sri Shyam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्२ रुख की पुनर्यात्रा पी, जिस पर सूखे हुए छोट-छोट सेत्रों का एड ढेर पढ़ा हुआ था। “वे कया बे रहे हैं *”--- एक रादगोर औरत ने पूजा। “सेव ”--मैंने उत्तर दिया । दद पेंकि में सम्मिलित हो गयी । अनेरु खिगरोँ तथा पुष्प जब कभी धूमने के लिए बादर जाते हैं झयवा काम पर जाते हैं, तब ये खरीदी के लिए अपने साथ बैठे छेइर निकलते हैं । पता सी कर कया मिच ज्ञाय | संविदा खाया भग्दार पुरान और छोट हैं तथा दढ़े-से-बड़े भग्डार भी, जो सभी पुराने हैं, बहुत दी छोटे हैं और यरीदारों से उमाठय भरे रदते ई । खाया, चत्र और घरेलू ठपयोग ही सामप्रियों की उपलग्यता में वैपम्य होने के वार, जिसके अनुसार नगर के एक माग को अन्य भागों की अपेक्षा, एक नगर को दूसरे नगर वी अपेक्षा दया व्यों को गाँवों को अपेक्षा अधि सामान मिलता है, खरीदी के ठिए धटुत अधिक यामा करनी पढ़ती है । मैने एक ऐसी सदिटा के सम्बन्ध में सुना, ऊी फर्नीचर खरीदने के छिए बोल्गानतर पर स्थित सारातोद से सैइड़ों मौल की यात्रा कर मार्क आयी थी । मारो में रिऐव स्ट्रीट में कपड़ों की एड दूवान में प्रनीक्षारत माइक में से कम से कम आधे श्राइक तिर पर रूमाठ बायथे हुए हपक छियी थीं, नो सम्भवत प्राद झल पीठ पर दूध लाद कर ख्ययी थीं । किसात नगर मैं खरादान् भी खरीदते हैं । स्प्रेणें में अत्यधिक भीइ द्वोने झा एक और कारण अलुओं की खराब रिर्म भी है 1 एक मदिस्य, जो जूतों का एक ऐसा जोड़ा खरीदती है, जो चार मददीने में ही फट जाता है, शीघ्र ही मोची दी दुझन पर पुन पैक्ति में प्र होती है। खराव किस्म के कारण परिमाग-सम्बन्धी समस्त सोवियत भांडशों में अत्यपिक कटोतो कर दी जानी चाहिए । १९९०-३० वी दशाव्दी क॑ झन्तिम भाग मैं, जब राजनीतिक आलेचना के छिए अभी तक अनुमति प्राप्त थी और उसे प्रझ्नशित भी किया जाता था, प्रातेरकी- बादी पार्टी सम्मेठनों में पैक्तियों के सम्बन्ध में शिवायत किया करते थे और उसे उच्च नीठि का परिणाम बताते ये । स्ताटिनवादी यह कद कर इंसका उत्तर देते कि यदद तो एक अस्थायी ददय है, लेकिन अब ऐसा प्रतीत होता है कि पैचियें। स्थायी बन गयी हैं । सोवियत सप अनन्त पैचियों -खाधयान, मैत्र, वाइन थादि के लिए उपने वाली पंचियों का देश दै। इस श्थिति का कारण विस्तारशील उद्योग और नौइरशादों की सथ्या में दृद्धि के परिणामस्वरूप नगरों की जन संख्या में हुई अप्यपिर्र दद्धि, अक्षमतापूर्ण परितरण प्रणाली और व्यापार पर राज्यीय शाधिपत्य के अन्नमेंत फटने पूरे बारी पुरानी दिकी-पद्धति हपा समय-समय पर उसन दने वाठा सामपियों का अभाव दै। इने समस्त कारणों का एक सूख कारण है




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