धर्म का स्वरुप | Dharm Ka Swaroop
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about हर्बर्ट ई. इन्ग्हम - Herbert E. Ingham
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भ्यरम का स्वरुप हू
-समुदायों और सेमी को थोर आते हैं जिनके लिए आधुनिक जीवत के
द्राह्म पारिवर्तनो का घर्मे के मूलतत्वो पर कोई सास प्रभाव नहीं पड़ा है +
अमेरिका में तयाकथित 'निम्न' मध्य वर्ग आधिक दृष्टि से निम्न नहीं
हैं-कम-से-कम इतने नही हैं कि उन पर ध्यान जाम 1 उनके पास भी
बुनियादी सासारिक वस्तुएं हैं और उन्हे कुछ बुनियादी शिक्षा मिली
हुई है । लेकिन उनके पास उस दुनियादी से ज्यादा शायद ही कुछ है,
और बुनियादी क्या है, क्या नहीं, इसका माव भी उन्हे उत्तराधिकार में
मिछा होता है.। वे जितने आराम से रह रहे हैं उतने आत्म-मतोपी भी
हैं। भाज यह संभव है बिना इस दात को जानें बीसदी सदी में कोई
अऋतिकारी बात हो गयी है कि कोई प्राथमिक और हाईस्बूल वी शिक्षा
या किसी काठेज द्वारा दी गयी हाईस्कूल की शिक्षा प्राप्त कर ले । और
यह समव हैं कि स्कूल में मिली शिक्षा में कोई वृद्धि किये बिना वहुत-से
असबारों, पत्रों और पुस्तकों को पढ लिया जाय । यह सोचना भी संभव
है कि विज्ञान का मतलव केवल टैवनोलौजी से है और टैबनोलौगी वा
मतलब है बेवल शारीरिक सुविधाएँ तथा आराम । और ऐसे घामिक
संगठनों का सदस्य दने रहना भी समव है जो अपने सदस्य करे इसी प्रकार
विश्वासों पर टिकाये रखना चाहते है ।
ऐसे छोगो के लिए पारिवारिक जापदाद की तरह जीवन का आध्या-
ह्मिक पहलू मी संस्कृति की विरारुत में मिलता है। धर्म का अर्य हमारे
पूर्वजों का विश्वास से कुछ भी ज्यादा नही है, और सस्कृति का मत-
लव है केवल एक परपरा को आगे बढ़ाते रटना 1 बे गिर्जाघर मे उसी
सौजन्य तथा सतोप के साथ जाते हैं जैसे कि सगीत-गोप्ठियों मे, और उसी
प्रकार नियमित्त रूप से वे अपराघ-स्वीकृति ( कन्फेशन ) करते रहते हैं
जैसे कि ये स्नान वरते हैं । उनमे से जो कुछ ज्यादा आत्म-चेतन हैं वे
धर्म का वेसे ही आनद छेते हैं जेसे कि अन्य प्राचीन वस्तुओ का--जौ कि
“आदर की पात्र हैं, अभी मी उपयोगी हैं और पवित्र स्नेह दिखाने के लिए
“बड़ी सुंदर हैं । लेकिन उनमें से अधिकतर सास्कृतिक दृष्टि से आत्म-
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