ग्रामदान प्रचार, प्राप्ति और पुष्टि | Gramdan Prachar, Prapti Aur Pushti

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Book Image : ग्रामदान प्रचार, प्राप्ति और पुष्टि - Gramdan Prachar, Prapti Aur Pushti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्रामदान * प्रचार (लोक-शिक्षण ) ७ उठेगा (विज्ञान के इस युग में मनुष्य ऊपर उठना ही चाहता है, छेविन सरकार और समाज की रचना उसे उठने नहीं देती 2 वह वार-वार उठना चाहता है, और वार बार गियणा दिया जाता है, और जब वह गिर जाता है तो उसका गिरना उसकी नालायकी का प्रमाण बन जाता है, और डण्डे की शक्ति से उसे सुधारने का स्वाँग रचा जाता है । छेकिन भय से कही गुण-विकास हो सकता है” और, गुण विकास के विना मनुष्य मनुष्य यन सकता है * मनुष्य मनुष्य वी सहायता से मनुप्य बनेगा, डष्डे के जोर से नहीं । पडोसी को पड़ोसी की दाक्ति मिलें और दोनों हाथ में हाथ मिलाकर आगे वढे, इसकी वुनियादी योजना प्रामदान-प्रयण्डदान में है, बल्कि वहीं उसका आधार है । ग्रामदान केवल सत्ता परिवर्तन नहीं है, उसमें समाज-परिवतेंन है, चित्त-परिव्तन है। लेकिन परिवर्तन के लिए बिसी व्यवित या समुदाय का सहार (एलिमिनेशन) नहीं है । (६) जीवन का संगठन सामुद्रिक बर्तुलो में--ध्यबित ओर गाँव से लेदर बिस्व तक । गाँव “सहजीवन' की स्वाभाविक इकाई 1 आज मनुष्य और मनुप्य के वीच अनेव दीवालें है--धन की, धर्म वी, जाति वी, सम्प्रदाय वी, भाषा वी, क्षेत्र वी, जन्म वी, सस्थृत्ति वी, यहाँ तक कि राष्ट्र भी एव जवरदस्त दीवाल ही है जो विश्व-मानव के विद्व- ह्दय को ऊपर नहीं आने दे रही है एक ही राष्ट्र बे अन्दर स्वय सरकार ने तरह-तरह की दीवासें वना दी हैं । जिला, राज्य, दासव' दासित, शिक्षित- अधिष्षित, दर और दल, आदि दीवाछे ही तो हैं, जिनके आपसी टकराव बे भेंयर मे आदमी पडा हुआ हे, और विसी मौहक लेविन सवु चित नारे के उन्माद में अपनी पाथविकतां वा प्रदर्शन करने से ही अपने जीवन दी सार्थवता मानता रहता है । गाय जीविवा और जीवन की स्वाभाविक इवाई है । इस बर्तछ के भोतर परिवार है, उसके भी भीतर व्यवित, जो सबके बेन्द्र में है । व्यविन- रिवारगाँव के बाद श्रम सहवारों समाज में सहवार थे वर्तुल बढ़ने




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