विष्णु पुराण का भारत | Visnupuran Ka Bharat

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Visnupuran Ka Bharat by डॉ. सर्वानन्द पाठक - Dr. Sarvanand Pathak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नारायण हैं। इस पुराण में विष्यु को परम तेजस्वी, अजर अचिन्त्प, व्यापक, नित्य, कारणहीन एव सम्पूर्ण विश्व में ब्यापंक बत्ताया है | यचा-- तदेव भगवद्भाच्य स्वरूप परमात्मनः 1 बाचकों भगवच्छब्दस्तस्यादयस्याक्षयात्मन* ॥ एविष्युपुराण ६1४६६ बर्थात्‌ परमात्मा वो स्वरूप “मगवद” शब्द दाच्य है और मगवत्‌ शब्द हो उस भाथ एवं अक्षय स्वरूप का वाचक है । वास्तव में ऐश्वरय,' धर्म, यश, थी, ज्ञान और वेराग्य गुणों से युक्त होने के कारण विष्णु, भगवानू कहे जाते हैं । विष्युपुराण में भगवान शब्द का निवंचन प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि जो समस्त प्राणियो की उतत्ति बौर नाश, आना और जाना, विद्या और अविदा को जानता है, वही भगवान्‌ है-- उतप्ति प्रलयं चैय भूतानामगर्ति गतिमू । वेचि विद्यामदिद्या च स वाच्यो भगवानिति ॥। --विष्युपुरण क्षशज्द विष्णु सबके आत्मरूप में एवं सकल भ्रेतो में विद्यमान हैं इमोलिए रहें चाबुदेव कहा जाता है । जो दो मूताधिपति पहले हुए हैं थबौर जो आागें होंगे, वे सभी सर्वशृत मगवानू विष्णु के अदा हैं। विष्णु के प्रधान चार अथ हैं। एक जद से वे अव्यक्तर्प ब्रह्मा होते हैं, दूसरे अश से मरीचि आदि प्रजापति होते हैं, तीसरा भश काल है और चौथा सम्पूर्ण प्राणी । इस प्रकार चार तरह से ये सूष्टि में स्यित हैं । शक्ति के तथा सृष्टि के इन बारो आदि कारणों के प्रतीक भगवान विष्णु चार सुजाबाले हैं । मणि-माणिवय विभूषित्त, वैजयरतीमादा से सुफ्ते, ऊपरी बायें हाथ मे धंख, ऊपरो दायें हाथ में चक्र, नीचे के बायें हाथ में कमल तथा नीचे के दायें हाय में गदाधारी भगवादू विष्यु हैं । विष्णुपुराण में बताया है कि इस जगत की निलेंय तथा निगुंण और निर्मल आत्मा को अर्यात्‌ १ तेइवयंस्य समग्रस्य ध्मस्य यशसश्थिय: । शानवैंराग्ययोइचैव पण्णा भग इतीरणा ॥ देसन्ति तत्र भूतानि भूतात्मन्यखिलात्मनि 1 से च भूतेप्वशेपेपु वकारायंस्ततो5ब्यय- ॥ विप्युपुराण है ५1७४-७५ १ सर्वाणि तत्र भूतानि वसन्ति परमात्मनि । सूतेपु च स सर्वात्मा वाधुदेवस्तत' समूत' ॥--विंष्णुपुराण ६४1६० जज]




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