वैदिक इण्डेक्स | Vaidik Index
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
639
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है. है
वर्तमान दद्याओं के व्यक्तिगत ज्ञान का भी उपयोग किया है । १९०७-८५ के
भारत भ्रमण के समय अर्जित इस प्रकार का ज्ञान मेरे लिए एक विद्यार्थी
और अध्यापक दोनों ही रूपों में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ है ।
चिपय-व्यवस्था--प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रतिपादित विपय को अघ्यायों में नहीं
वरन् मलग-अलग लेखों में विभक्त भौर वर्ण-क्रमानुसार व्यवस्थित किया
गया है । व्यवहारत: यह क्रम उस समय गौर भी आवइयक हो गया जव
ग्रन्य को केवल व्यक्तिवाचक नामों तक॑ ही सीमित रखने की योजना बनाई गई ।
जय बाद में अन्य विपयों को भी सम्मिलित कर लिया गया तो उस समय भी
यही व्यवस्था सर्वाधिक सुविघाजनक प्रतीत हुई। यतः ग्रव्य के सभी लेख
संस्कृत दयाब्दों पर ही लिखे गए हैं अतः उनका क्रम भी संस्कृत व्णेमाला के
अनुसार ही है। फिर भी संस्कृत से अनभिज्ञ लोगों को भी इस व्यवस्था से
असुविधा नहीं होनी चाहिए, क्योंकि उन्हें जो कुछ भी विवरण चाहिए उसे वह
द्वितीय भाग के अन्त में दिए हुए अंग्रेज़ी दाव्दों की सुची की सहायता से हूँढ़ सकते
हैं। संस्कृत शब्दानुक्रमणिका भी, जिसमें प्रतिपाद्य विपय से सम्बद्ध दाव्दों के
अतिरिक्त प्रसंगाबुसार लेखों में आनेवाले शब्द भी सम्मिलित हैं, संस्कृत
वर्णमाला के क्रम से ही व्यवस्थित है । किसी प्रकार की असुविवा न हो इसलिए
प्रस्तुत भूमिका के अन्तिम पृष्ठ पर संस्कृत वर्णमाला का क्रम भी उदुघृत कर दिया
गया है । इसी उद्देश्य से सभी संस्कृत दब्दों को व्याख्या या अनुवाद भी दे दिया
गया है, वयोंकि, यद्यपि संस्कृत के विद्वानों के लिए तो यह दाव्द स्पष्ट हो सकते
हैं, तथापि अन्य को उन्हें समझने में कठिनाई होगी । यौगिक दाव्दों को हाइफन
(- ) देकर खणडों में विभक्त कर दिया गया है। अस्पष्ट तथा अनियमित
रूप से वने संस्कृत दाव्दों की दया में मैंने कहीं-कहीं व्युत्पत्तिशास्रीय व्याख्या
भी दे दी है, जो संस्कृत के विद्वानों के लिए भी उपयोगी हो सकती है । कोष्ठों के
भीतर प्रसंगानुसार व्याख्याएँं और संदर्भ-संकेत देकर किसी भी पुस्तक के मुल
विधय-वस्तु को वोझ्चिल बनाने का मैं सदा से विरोधी रहा हूँ, क्योंकि यह पाठकों
का घ्यान विभाजित और तर्कों को शीघ्रतापूदंक ग्रह करने में बाघा उत्पन्न
कर देते हैं । मत्त: मैंने प्रस्तुत ग्रन्थ में ( जेसा कि पिछले अनेक ग्रत्थों में भी है )
मुल विषय को इस प्रकार की अवरोधक सामग्री से रहित रव्खा है और सन्दर्भ-
संकेतों, गोरा व्याख्याओं, उदाहरणों और वाद-विवादों को टिप्पणियों में ही दिया
है । इसके एकमात्र अपवाद संख्याओं के रूप में छोटे-मोटे सन्दर्भ ही हैं जो केवल
दो या तीन पंक्तियों वाले लेखों में आते हैं, उदाहरण के लिए 'कौषारव” दाब्द
User Reviews
No Reviews | Add Yours...