जुलूस | Julus

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Julus by यामा सराफ - Yama Saraf

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जुलूस ्रिक्षागृह और रंगमंच एक ही है । बैठने की सीटें यहां-वहां रख दी गई हैं । उनके बोच से गोरखधंधे की तरह का चक्कर खाता हुआ रास्ता । रास्ते के दोनों ओर दर्शकों के बैठने का स्थान । दर्शकों को दरवाजे से भीतर लाया जा रहा है, रास्ते पर घुमाकर उन्हें छोड़ दिया जाता है-- दर्शकों की जहां इच्छा हो वहां वैठें । नाटक के आरंभ होने की घंटी वजती है। कोरस, जिसमें पांच लड़के (एक से पांच) एवं एक लड़की (छह) हैं, साधारण दशकों की भांति आकर कमरे में तितर-बितर हो जाते है, मानो बैठने की जगह खोज रहे हों। अचानक सव बत्तियां बुक जाती हूँ ।] एक : क्या हुआ ? बत्तियां क्यों बुभ गई ?




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