संक्षिप्त तीसरी पंचवर्षीय योजना | Sankshipt Tisari Panchvarshiya Yojna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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13 शामिल हैं, निश्चित श्रौर अग्रिम योजना बनाने को झ्ावइ्यकता है। विकास के दीर्घकालीन दृष्टिकोण से नीति श्रौर कार्यक्रम निर्धारित करने और प्रगति को झांकने में लाभ होता है । वास्तविक उपलब्धि और श्रनुभव के आधार पर स्वय इस दृष्टिकोण का भी समय-समय पर पुनर्मुल्याकन करने की आ्रावश्यकता है । 3... पहली पोजन। में [951 से 1981 त्तक के तीस वर्षों में झ्राथिक विकास का भविष्य-चित्र आकड़ों में प्रस्तुत किया गया था । पहली योजना से जो स्थितिया श्रौर घारणाए एक प्रकार से उत्तराधिकार के रूप में चली झ्रा रही हें, उनकी दूसरी योजना में ग्रये-व्यवस्था की वास्तविक उपलब्धियों की रोशनी में समी क्षा की गयी । यह सुकाया गया कि [1950-51 की तुलना में 1967-68 तक राष्ट्रीय प्राय और 1973-74 तक प्रतिव्यक्ति प्राय दुगनी हो जाएगी । राष्ट्रीय भ्राय प्रतिवर्ष लगभग 6 प्रतिणत भी बढती रहे, तंब भी, जनसख्या- वृद्धि ब्रौर उसके भावी रख को देखते हुए, पाचवी योजना के मध्य तक 1950 51 की प्रति- व्यक्ति आय को दुगुना करने का दूसरी योजना में व्यक्त इरादा पूरा करना . कठिन होगा । 1971 और 1976 के लिए इस समय जो अस्थायी अनुमान है, उनके आधार पर 1961- 6 के वीच जनसब्या में कुल वृद्धि 18 करोड 70 लाख हो सकती है। यह ग्रतुमान है कि जनसंख्या में इस वृद्धि के साथ-साथ इसी अवधि में श्रमिक वर्ग की सख्या लगभग 7 करोड़ बढ़ सकती है । जनमछ्पा में इस वृद्धि को देखते हुए और बेरोजगारी तथा श्रत्प-उत्पादकता की समस्या को हल करने को जरूरत समभने हुए यह आवश्यक है कि. अथे-व्यवस्था का यथासम्भव विस्तार किया जाएं । दि दीघेकालीन विकास का मार्ग-निर्धारण 4... श्रयली तीन योजनाओं की अवधि में यह श्रत्यावश्यक है कि आर्थिक विकास की समस्त सम्भावनाओओ का पूर्ण और प्रभावशाली ढग से लाभ उठाया जाएं । इसके लिए यह झ्ावश्यक है कि श्राथिक विकास की ऐसी नीति पर ला जाएं, जिससे श्र्थ-व्यवस्था का तेजी से विस्तार हो भ्रौर वह यथासम्भव अल्पावधि में आत्मनिर्भर श्रौर प्रात्मवाहक हो जाए । तीसरी श्र, उसके बाद ग्रानेदाली योजनाओं में जो नोति रखी गयी है, उसमें कृषि शरीर उद्योग, ग्राधिक और सामाजिक विकास, राष्ट्रीय और प्रादेशिक विकास, श्रौर घरेलू तया बाह्य साधनों की परस्पर-निभंरता पर जोर दिया गया है । 5... कृषि और देहाती श्रथ-व्यवस्था--देहात मे जनदक्ति भर स्थानीय साधनों के अधिकाधिक उपयोग के श्राधार पर कृषि का विकास देश की झीश्न उन्नति की कुजी है। पर्याप्त सिचाई, उवंरको के प्रयोग, भ्रच्छे बीज श्रौर उपकरणों के इस्तेमाल, किसानों को खेती के सुघरे तरीकों की शिक्षा, भू-घारण नियमों में सुधार और सहकारी ढग पर कृषि अ्रथे- व्यवस्था के विकास से अपेक्षाकृत कम समय में उत्पादन का स्तर काफी ऊचा किया जा सकता है । इस भ्रदधि मे जो लक्ष्य प्राप्त करने है, वे है; विविध श्ौर कुशल कृषि-प्रणाली का विकास, जिसमें पशुपालन, दुग्घ-उत्पादन, मांस-मछली का उत्पादन, मुर्गीपालन झ्रादि




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