व्यापार संघठन | Vyapar Saghatan
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
661
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२) [ व्यापार सज्ञहन
बहुत श्रच्छी चौज नहीं दै | श्रक्छर ऐसा देखा जाता है कि जल्दबाजी का काम दी
व्यापार की श्रसफलता का प्रत्यत्त कारण बम जाता दे |
ब-एकाकी व्यापारी श्रपने व्यापार की बातों अथवा गुप्त मेदी (8००१०8)
को छिपाकर रख सकता है !. प्रतिन्दी (ए०००8ध०१४) जितना झभिक उछ्की
व्यापारिक योजना्रों (815०5) या शुस रहस्यों को किसी प्रकार जान लेके हैं, सुचार
रूप ते व्यापार के चलाने अ्रयवा सफलता के उठे उतने हों कप श्वसर सिनते की
सम्मावना रहती है ।
१--चूंकि हर न्यापार के चलाने में श्रपनी विशेष जोखियें दोती हूँ; इसलिये
व्यापार के मालिक मैं इसका उचित प्रबनघ करने की योग्यता तथा क्षमता होनी चाहिये,
श्न्यया व्यापार के असफल होने की श्रधिक सम्भावना रहती दै । यहीं कारण दे कि
एकाबी च्यापारी को श्रपने व्यापारिक प्रबन्ध मैं काये-लमता प्राप्त करने का ्धिक
अच्छा श्रवतर मिलता है ।
हि एकाकी व्यापार से हानियाँ
इन उपयुक्त लाती के होते हुए भी, ऐसी झनेक शसुविधाएं' होती हैं - जिन
एकाकी व्यापार में, सफलता पूवंक व्यवस्था करने में पगन्पम पर कठिनाइयों श्र
सफल का सामना करना पढ़ता है । दे झसुविधाए या दानियोँ ये हैं :--
१--एकांगी व्यापारी श्रपने बढ़ते हुए ब्यापार के लिए, जितनी पूँजी की
श्रावश्यक्ता होती है, उस सबकी पूर्ति नहीं कर सकता । सिवाय उन दूशाओओं के
लहदं कि या तो व्यापार श्रत्ताधारण दृद तक उन्नति कर जाता है श्रौर उसकी यशंस््रिता
(ए0809155) बढ़ जाती है या ज्द्दाँ स्यापार का स्वामी श्रपने व्यापार लॉम के
श्धघिक्तम भाग को 'उसी व्यापार मे लगाने की इच्छा रखता हद या लगाता जाता द्दै,
श्रन्य द्शाओँ मैं व्यक्तिगत साइंस (1दत1४1त०४। छ०६०४फर88) व्यापारकी उन्नति में
बुरी संग बाघक दो सकता है । चाहे व्यापार का लाभ स्वयं न लेकर उसी मैं लगाया
जाय श्लौर इस प्रकार ध्यापार की पूँजी को बढ़ाया जाय; किन्तु फिर भी व्यापार को
प्रूँजी वो चढ़ाने या व्यापार को दिस्तृत करने का यदद एक छोटा या धीमा साधन दे
झौर कमी-कमी तो यह साधन इतना साधारण दोता दै कि इससे व्यापार में
बिल्कुल सामान्य विकास की मी सम्मावता नहीं रहदी; इस्ते व्यापार की कोई ख़ास
उन्नति महदीं दोती ।
२--दढ़े-बढ़े व्यापारों मैं प्राय किसी एक मदुष्य की चेमता श्रौर शक्ति की
दपेच्माप ऋषिक न्यापारिक निसंप (छिएआाप०8० 7००टर्७७६), कुशलता (वध्णा) श्र
योग्यता (80769) की श्रावश्यकता दोती है | इसी कारण ऐसे व्यापार को रुदालित
बचने के लिए भिन्न-भिन्न व्यापारी परस्पर+सम्मिलित होते हैं. जितवे कि वे श्रपनों
सहकारी बुद्धि, कुशलता, योग्यता श्रादि से लाम उठा सर्के ।
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