श्री भागवत दर्शन खंड 71 | Shri Bhagwat Darshan Khand 71

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Shri Bhagwat Darshan Khand  71 by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( है ]) जब दघीचि सुनि से देवता लोग घूत्रासुर को पमारने,को उनकी हड्डी माँगने गये, तब ऋषि ने कहा--'शरीर :तो में त्याग दूंगा, तुम मेरी ग्रस्थिगें से वज्ज बना लेना, किन्तु मेरो इच्छा समस्त तीर्थों “की यात्रा करने की शेप है ।'' देवताओं का तो स्वार्थ था, वे सोचने लगे--“त जाने ऋषिवर कितने दिनों तक तीर्थ यात्रा - करते रहें । उन्हें तो श्रपनी स्वाथे सिद्धि की शीघ्रता-थी देवताओं ने: कहा--“ब्रह्मनू ! श्राप तीर्थ में कहाँ भटकते -फिरीगे तीर्थ . यात्रा में ।दडा 'बण्ट होता है। श्रापको तो तीर्थो में रनान ही करना है न? हम यदि सब तीर्थों को यही बुला दें तो ? ”' के - शषि को इसमें क्या झापत्ति होनी थी: ।: ऋषि जिस तीर्थ का-नाम लेते वही तोर्थ देवताश्रों के प्रभाव से वहाँ झा जाता । इस प्रकार दघीचि सुनि ने तो सेमिपारण्य में बैठे हो वेठें “सब रोथ कर लिये | मेरे. लिये सब तीर्थों' को कौन बुलाता'? इसलिये एक तीर्थ यात्रा गाड़ी चलाने का निश्चय किया ।' घृ'दावन से थी बलदेवाचार् प्रतिबप साड़ी से 'जाते थे उन्हीं की वह गाड़ी थी; मुक्ते न उससे कुछ हानि थी, न किसी .प्रकार का झाधिक ला ? सालोचकों ने तो झूठा ' हस्ला उढा दिया-बहादारी जी को इससे इतना लाभ हुआ है।” किन्तु यह एक दम सफेद मुठ । ईजिनको गाड़ी थी लाभ उन्हीं को हुआ होगा । एक, बात. घौर हे । प्राणी स्वभाव .के वशीमूत होकर हो-सब बाय करता है। एक राजा के.पुत्र हुमा । उस -पुत्र के जेसे सबके चोक के झागे चार दाँत होते है, उसके. तीन ही दाँत -थे ॥ प्राय: चार के स्थान में दो दाँत वाले ता चहुत मिल जाते है, तीन दाँत साले कोई विरले ही होते हैं। तोन दाँत होना दोप माना जाता दै। ज्योतिपियों नै. राजा से कहा.-“महाराज ! इस लड़के को




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