पश्चिमी चालुक्य काल ३ | Pashchimi Chlukya-kaal 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
53
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१३२] संक्षिप्ठ जैन इतिहास ।.
इलससरेकि, एप चेए ८. के. ..ऑ. के के २ के, * के; : न. के. ए के; आर: ५ चर ८. .२१:२२५७७८२९३त
पर निमेय था । उनके साथ कुछ राजकमंचारी भी रखे गये थे |
इस प्रकारकी व्यवस्थाका ही यह परिणाम था कि टक्ष्मीके सदुपयोग-
द्वारा धर्माक्ष हुआ था ।
उस समय जैनधमके मुख्य केन्द्र श्रवणवेल्गोल, पोदनपुर, कोपण,
बलिग्राम, बादामी आदि स्थान थे । श्रवणवे-
जन केन्द्र- . ल्गोल श्रुतकेवली बदबाहुके पहलेसे ही जैन
श्रवणबेल्गोठ। धर्मका पवित्र स्थान था । चाठुक्यकालमें भी
वह एक ' महातीथे ' माना जाता था । इस
कालमें यहांके कई जैनाचार्योने चादुक्य राजाओंसे सम्मान प्राप्त किया
था | वादिराज, वासवचन्द, विमल्चन्द्र, परवादिमल, अजितसेनाठि
जैनाचाये राजाओं द्वारा सम्मानित और श्रवणबेल्गोलसे सम्बन्धित थे ।
धार्मिक भनुष्ठानोंकों सम्मन्न करनेके लिये लोग श्रवणवर्गोल पहुंचते
थे और श्रवणबेल्गोलमें सलेखना ब्रत अहण करके ऐहिक जीवनठीला
समाप्त करना महती पुण्योपाजन करनेका साधन समझते थे। धमंघुरीण
गुरुओंके सालिकट्यमें ध्मराधनाका सुयोग देवदुलेम है । किन्तु
चालुक्य कालमें वह श्रवणवेल्गाठमें सुलभ था ।
पोदनपुर भीं उस समय जैन केन्द्र होहहा था । यह वही प्राचीन
स्थान माना जाता था जहां भरत चक्रवर्ती
पोदनपुर |. और बाहुबलीजीके अर्दिसिक-युद्ध इस युगकी
आदिमें हुये थे। वहीं पर बाहुबलीजीने तप
तपा था-वहीं पर इस पुनीत धघमम-कमंकी स्मृतिमें श्री भरतमहाराजने
वििटाग
-मैथूर आर्के० रिपोट, रुनू १९१६, पृ० ४९ |
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