नींव की ईंट | Ninv Ki Int

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Ninv Ki Int  by चन्द्रवती ऋषभ सैन जैन - Chandravati Rishabh Sain Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२४५ कहानियाँ चुनी जाएँ तो यह छासानी के साथ उन में स्थान पा सकेगी । अपनी भूमिका में उन्होंने कहा है-- “इन कहानियों में कल्पना के करिश्मों का अभाव है । ये सब मेरे या मेरे साथियों के जीवन की घटनाएँ हैं । इन के पात्र मेरी 'सष्टि' नहीं है, मेरे 'कामरेड' हैं । वे मेरे साथ हैँसे, खेले और रोये । मैं उन मे श्रौर वे मुझ मे बराबर इवे रहे । लिखते समय मुमे कभी नहीं लगा कि में लिख रही हूँ । सन्दलरसिंह से मैंने बातें कीं, चक़ल से चुदल श्र 'अख्नहारी, ललिता तौर मींकती के साथ मैं रोई !” अपने पात्रों के साथ उन का यह तादात्म्य ही उन की सफलता की कुझ्नी है । यह तादात्म्य उन्हें अपने हृदय की सहानुभूति का उत्सगं अपने पात्रों के प्रति करने में सहायक होता है । उन के व्यक्तिगत जीवन में सहानुभूति, सह्ददयता और स्नेह का यह झखण्ड भरणडार उन्हे प्रकृति से मिला है । विगत बीस वर्षों में, वे बरावर फूलों में रही हैं, पर वे अपने हाथ से कोई फूल तोड़ नहीं सकतीं । उन में शनेक बार इस अमिलाषा का उदय हुआ है, वे व्रत्त के पास तक गई हैं, मन ने प्रेरणा की है, पर उन के संस्कार ने अंगुलियों को सहारा नहीं दिया । उन के शरीर पर काटते मच्छर को भी कोई उन की जानकारी में नहीं मार सकता श्६




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