ब्रह्म सूत्र शाड्करभाष्य | Brahm Sutra Shadkarbhashya

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Brahm Sutra Shadkarbhashya by रमाकान्त त्रिपाठी - Ramakant Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ ; ब्रेहांसूतरशा खुरभाष्यचतुःसूत्री रज्जु और सपं इन दोनों के भेद को प्रहण न करना है। रज्जु प्रत्यक्ष है और सपं की स्मृत्ति होती है और इस भेद को न देखकर हम यह से. है ऐसा कह देते हैं। यह किसी दोष के कारण होता है। अतः दोष के कारण भेद के ज्ञान का अमाव हो सकता है किसी सिथ्या वस्तु का ज्ञान नहीं हो सकता । किसी भी शान को मिथ्या कहना उसे शान न कहने के समान है जो आत्म-विरोध है । * प्रश्न यह है कि क्या इदं और रजतम्‌ का अलग-अलग ज्ञान होता है ? यदि कहा जाय कि होता है तब दोनों के भेद का ज्ञान क्‍यों नहीं होता ? और दोनों का ज्ञान भलग-अलग नहीं होता है तब यह मानना होगा कि इदे रजतमु यह एक ज्ञान है। दूसरी बात यह है कि यदि यह सर्प है या रजत है ऐसा ज्ञान न होता तो केवल भेद-ज्ञान के अमाव से हम सर्प से डरते क्‍यों ? और रजत से आकृष्ट कैसे हैते ? ज्ञानाभाव से क्रिया कैसे हो सकती है? यदि यह कहें कि समानता के कारण क्रिया हो सकती है तो जहां भेद का ज्ञान नहीं वहाँ समानता का जान कैसे होंगा ? यदि सपे को स्मृति माना जाता है तो दो प्रइन उठते हैं । एक तो यह कि सर्प यदि स्मृति है तो दिखाई कंसे पड़ता है? और यदि यह कहें कि सर्प स्मृति होते हुए दिखाई पड़ता है तब यहाँ स्मृति और प्रत्यक्ष के विषय में भ्रम मानना पड़ेगा । यह कहना कि सर्प दिखाई नहीं पड़ता है सर्वेथा अनुभव के विरुद्ध होगा । दूसरा प्रदन यह है कि सर्प-विशेष जो यहाँ दिखाई पड़ता है वह स्मृति है तो उसे परिचित सा मालूम पड़ना चाहिये परन्तु ऐसा अनुभव नहीं होता । प्रभाकर के लिये यह समझाना कि सर्प इदं के रूप में कैसे मालूम पड़ता है कठिन है। भ्रम का जब निवारण होता है तब हम यह नहीं कहते है कि अरे सपं तो स्मृतिमात्र था किन्तु यह कहते हैं कि अरे हमने रज्जु को सप समझा था । अन्ययाख्यातिवाद नैयायिक इस बात को स्वीकार करते है कि सप॑ स्मृतिमांत्र नहीं है । उनका कथन यह है कि सर्प सत्य हैं और उसका प्रत्यक्ष ज्ञान होता है किन्तु यह ज्ञान साधारण प्रत्यक्ष नहीं है प्रत्युत एक प्रकार का असाधारण प्रत्यक्ष है जिसे वे ज्ञान-लक्षणा- प्रत्यासत्ति कहते हैं । अत: इदं का सपंवत्‌ होना मिथ्या होते हुए भी सर्प सत्य है। सपं कहीं अन्यत्र है । श्रम भेदज्ञान का अमाब मात्र नहीं, उसमें अन्थया ख्याति है । इदं और सपं का सम्बन्ध मात्र मिथ्या है न इदं मिथ्या हैं न सप । भ्रम निवारण का भयें यह है कि सप यहाँ नहीं है अन्यत्र है।




User Reviews

  • sanatan Nisarg

    at 2021-12-16 02:38:18
    Rated : 8 out of 10 stars.
    इस पुस्तक की श्रेणी वेदांत है
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