पट्टमहादेवीशान्तला भाग २ | Patta Mahadevi Shantala [ Part - Ii ]

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पी० वेंकटाचल शर्मा - P. Venktachal Sharma

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सी० के० नागराज राव - C. K. Nagraj Raav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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या हेग्गड़ेजी के साथ ?”” “कैसा करता ठीक होगा ?”' “तन, मैं इस सम्बन्ध में कूछ नहीं कहूँगी । आप हैं, आपके हेग्गड़े हैं । जैसी आपकी भाज्ञा होगी, वैसा ही करना मेरा काम है।”” “ऐसी बात है तो जब हेग्गड़ेजी आवें तब साथ बैठकर सहज भाव से कुशल- क्षेम पूछने और बातचीत करने में तुम्हें भी हाथ बटाना होगा ।” “आप दोनों पुरुषों के बीच में मैं **?”” “तो यह नहीं होगा, यही कहना चाहती हो ?”” “ऐसा नहीं, यों ही मैं बीच में क्यों रहूँ ? इसलिए कहा ।”” “यही तो तुम गलत सोचती हो । छोटे अप्पाजी के उपनयन के निमन्त्रण-प्र का जो प्रसंग उठ खड़ा हुआ है, उस बारे में विचार होते वक़्त तुम्हारा उपस्थित रहना अच्छा होगा क्योंकि इस प्रसंग का कितना व्योरा हेग्गड़ेजी जानते हैं वह अब हमें भी मालूम होना चाहिए। वह मालूस हो जाये तो आगे के लिए कुछ रास्ता निकल भायेगा । अनायास यह मौक़ा मिला है । वह भी इसलिए कि हेग्गड़े जी युवरानीजी के सुरक्षा-कार्य पर यहाँ आये हैं । समझीं 1” “हुँ, मैं भी उपस्थित होऊँगी, आप दोनों के उपाहार के बाद ।”” “वैसा ही करो,” कहकर दण्डनायकजी अपने कमरे की ओर चले गये । चामब्बे भी अपनी कोठरी की ओर चली गयी । वह खुद को इस अनाकांक्षित मुलाकात के लिए पहले से तैयार कर लेना चाहती थी । निश्चित समय पर हेग्गड़े मारसिंगय्या आ पहुंचे । दडिगा ने मालिक की भाज्ञा के अनुसार उन्हें वैठाकर आने की ख़बर भेज दी | दण्डनायक आये । हेग्गड़े जी ने उठकर हाथ जोड़कर प्रणाम किया ।. 'बैठिए हेग्गड़ेजी' कहते हुए दण्डनायकजी हेग्गड़े के पास वगल में बैठ गये । हेग्गड़े दो कदम पीछे हटकर थोड़ी टूर पर जा बैठे । दण्डनायकजी ने तकिये का सहारा ले लिया । हेग्गड़ेजी तकिये से कुछ आगे पाल्‍्थी मारकर बैठ गये थे । यहाँ किसी तरह के संकोच की जरूरत नहीं, हेग्गड़जी । यह घर है। आप मेरे आमन्त्रित अतिथि हैं । मैं दण्डनायक हूँ बौर आप हेग्गड़े--इसे कम-से-कम यहाँ घर पर तो भूल जाइये।” “घर हो या बाहर, आप पोप्सल साम्राज्य के महादण्डनायक हैं। मैं कहीं भी रहें, आखिर हूँ तो एक साधारण हेग्गड़े ही । और आप, कहीं भी रहें, भापकों यथोचित गौरव तो मिलना ही चाहिए। इसे मेरा संकोच न समझें ।” विनीत होकर हेग्गड़े ने कहा । उनके कहने में पूरी सहजता थी । रसोइन देकब्वे एक परात में पानी का लौटा और उपाहार सामग्री ले आयी थी । वहाँ से बहू लौट ही नहीं पायी थी कि दण्डनायिका आ पहुँची । आते ही पटुमहादेवी शान्तला : भाग दो / 11.




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