दुरसा आढ़ा | Dusra Ardha
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
86
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)औौवन-परिचिय री
माइण री. गोपाल, वडो ठाकुर बरदाई
पलटी सिर पागडी, कह यो निज मुख सू भाई
मान सो खान महोवत मिलै, छन्नपती चाहै घणा
चडभाग वाह पाठक व रण, तू दुरसा मेहा तणा
प्सोजत का राव रायप्िह, आधे राज्य का स्वामीन्सा बना, सोजत में
ग्वावा” कहबर वतलाता है। मांडण का पुत्र गोपाल, जो बरदायक बडा ठाकुर
है, पड़ी बदल भाई बन गया है । मोहब्बत खान सम्मानपुरवेंक मिलता है। दूसरे
अनेक छल्रघारी राजा भी बहुत चाहते हैं। चारण वर्ण की पालना करने वाला
मेहा का पुत्र दुरसा बडा भाग्यशाली है ।”
विशिष्ट दान और जागीरें
चहा जाता है कि दुरसाजी को सो 'कोडपसएव' मिले थे जिनमे से तीत दाद-
शाह गकवर से, एक सिरोही के राव सुरताण से, एक बीकानेर के महाराजा
'रायिहव से, एक महा राजा अमरसिंहू से तथा एक 'जामनगर' के जाम सत्ताजी से
मिला । इसके अतिरिक्त धूदला (मारवाड) पाचिटिया (सारवाइ), नातल कुडी
(मारवाड) हीगोला (मारवाड), पेशुआ (सिरोही), झाकर (सिरोही) अूड
(सिरोही), साल (सिरोही), लूगिया (सिरोही) 'दागला, (सिरोही), रायपुरिया
(मेवाड़), दुढाडिया (मेवाड़) और कांगडी (मेवाड़) नामक गाव भी इन्होंने प्राप्त
बिए। इनके अतिरिक्त अनेक साखपसाव तथा दूसरे पुरस्कार भी प्राप्त निए।
दुरसा के किए परोपकार एवं निर्माण
दुरसा ने दानादि मे प्राप्त अपार घन राशि से परोपबार के बनेव बार्थ किए
जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं
(1) आावू पंत पर अचलेश्वर महादेद के मदिर मे दानादि दे अवसर पर अपनी
दो पीतल की मूर्तिया वहा स्थापित वी, जिनपर उनके नामी का उल्लेख है।
अनेव विद्वानों ने इसकी सत्पता प्रमाणित दी है।
(2) अपने जागीरी गादो--पशुआ तथा पाचेटिया में 'दुरसोछाव' तथा “किसन-
ढाव' नामक तालाव स्वय के तथा छोटे पुत्र किसना के नाम से बनवाए।
(3) 'पाचेटिया तथा' 'हीगाला' में मावास-गृह बनवाए ।
(4) पैशुआ में वालेश्वरी देवी का एक तथा पाचेटिया मे दो मदिर बनवाय ।
(5) सयपुरिया तथा दुाडिया में वावडी, अरहट एव कुए वनवाये ।
(6) चारणा को कोडपसाव का दाल स्वय दिया !
(7) पुष्बर में चारणी वा एवं मेला लामल्रित बर चौदह लाय रुपए व्यय किए
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