ऋतु शेष | Ritushesh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एक छिटका हुमा कालसाड/रै७
होकर, बिना बुछ कहें; उनके साथ चल पड़ी । सदा
पदमा चावों में उसकी तरफ देखा तो उसने स्वत बता दिए कि
चादिल उद्यान के पास उसने इस कार को रोका था भौर लिपट मागी थी ।
उहोन थोड़े सकोच के वाद हो उसे बैठाया, मगर 'दुष्टा' ने उसने बच्चे
ही 'बेशामिया' शुरू कर दी । उसने ऐतराज किया तो उहोने गालियो देकर
उसे 'वस चुप रहने” के लिए फटकार दिया, श्रोर जब वह चुप नहीं रही हो
से यहा उतार दिया 1
उसने ध्यान से दवा । महिला मध्रेड, लवी-तगडी, ठोस श्रोर गठी देह
दी थी, मगर बहुत फूहड चाल से चल रही थी । उस लिपट देने वालो का
शायद इसलिए कृपा करनी पडो थी कि वह गमवत्ती थी । चह बडबडाते
हुए बढ़े मजे से उनके साथ साथ चलने लगी )
पदुमा चाकी ने पूछा कहा जाना है श्रापको
-माहिम बाजार | झापकों ? लेविंने वह भ्रपने प्रदन बा उत्तर पाये
'बिना गिडगिडा उठी--झाप लोग सुके साथ लेते घलिये मे !
-काई हज नही, लिये | पटमा चाका न कहा ।
ना, प्लीज भाप नहीं जाएदे मैं ब्सि मुसीबत में फसी हुई हू ।
घर मे मेरे दो छोटे बच्चे हैं श्रौर घोटी वहन है बस 1 श्र मेरा घरवाला
अगर पहुंच गया तो
उसने झपनी जवान काट ली ! लेकिन इसके साथ ही उसने उन दानों
को देखा, जो उसे झपल देख रह थे । वह फोकी-सी हसी हसवर सफाई
चने लगी--बुछ सही । में तो बसे हो कह रही भी 1 ध्ौर सहसा उसकी
भालें सजल-सी हो गयी, भौर उसने चेहरा सीधा कर दिया. थोड़ी दर
चाद वह फिर वडबडान लगी 1
ज्
दोनो सहिलाश्ा के साय साथ चलता लुडरा ग्रपन एप हो बसी युस
जाता, कभी उमय उठता । जद भी उसका हृदय उमगता, उसकी इच्छा हाती
हि पेड महिला के एददम शिकट होकर बहे वि लावण्यमयी, बाप सलिन
ने हैं, बस एक दार शरीर मुझे राजदार बना लें । फिर मैं सुगह शाम
पापी न्ययाए सुनूगा, झापके घाद सीपूगा, श्रापका रोप सट्टा, श्रापको
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