श्री इन्द्रियपराजयशतक | Shree Indriye Parajay Satak
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
468 KB
कुल पष्ठ :
40
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११३)
सो मण्णण वराओ
'सयकायपरिस्समं सक्खें ॥ ३४ ॥ जुम्म॑
दुर्मिल ( सचेया )।
श्मके वशमें फँंसि कूकर ज्यों;
रसके हित अस्थि 'चवावत है ।
निज श्रोणित चाखत मोद भरो;
पर नेकु विवेक स लावत है ॥
नर हू वनिता तन सेवनतें,
तनिको न करूँ सुख पावत है ।
निज देह परिश्रसके मिसतें,
सुखकी सठ भावना भावत है ॥३३६-१४॥ 'युग्म
सुझवि मर्गिजंतो
कत्यवि कयलीड णत्यि जह सारो ।
इंदियविसएसु तहा
णत्ति सुदद सुइवि गविई ॥ २५ ॥
दोहा ।
हु विधि सोजत हर नहीं; रेम्मधम्भमें सार ।
तैसे इन्द्रियविपयसुख, जानहु सदा असार ॥ इ५ ॥
सिंगारतरंगाए विरासवेलाइ जुव्वणजलाए ।
के के जयंमि पुरिसा णारीणइए ण चुइति ॥३६९॥
१ कैठेका संभ 1
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