शुद्दाआधाय जाइनसागर प्रकिर्या | Shuddaaabhay Jainasagar Prkirya

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Book Image : शुद्दाआधाय जाइनसागर प्रकिर्या  - Shuddaaabhay Jainasagar Prkirya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खफीस+भाग+ साजूम+ जरद। झुक पथ्चोन्दीय लग्यरी कामोत्पादक मस्यपाणो परखी। शया सचक्ति भति सारगी अति परीग्रहो झतीवसनावान कोर कभी कुरसत सि ले नहीं ओरशास्व .बाचने वाले के बुलाने ज्ञादे ते कहे भाता हू जपने घरके काम फरने लग जा य जोशावेतो 'बखत कोइ के श्ावे 'ओता जन बैटेर व्याकुल होयचचलेजालें और कितेक तो भपभी ख्यात । खास सान बढ़ाई के भथे सूखे मनुष्यन में सहंत खन के शास्त्र बीचे फोर लत्याय केशुप्का मकर ताऐसेअपदेश दातासें जीवों का कल्याण कैसे होवे सत्याथ धर्म का मागे कैसें चले ! |जोजपना प्रमाद सेट निज कस्याण। जुकिया तो वाके तो उपदेश ते श्लोतानिका कल्याणा | होना केसे सभथे। सथगोतासें।(लसण लिखते हैं प उत्तेस सथ्यमलधस इन | तीनें के चामे 'शथमउत्तमके चास गो ९ हेस रत्न परीस्सक ३ कसोरी ४ शम्नि ५ 'दप्पेशाइ!! हुला3 रहष्पे ८ मध्यम खोताके नास स्रसिका ९ शुकर पवन ६ सध मच्नोताकि सम सप्प २ झाज्सार २ जलौका ३'वक ४ वर्क ५ दशमसक ८६ फूटाघर 3 दिस्‍्लाप न्याखनी रस न २०) सथउत्तमभोताकिलघा शाकरते हैं ते शोस्वभाव अोवाउसेकरतिह् जे ) ' जोत्रण के सधाएा करती है फ्रीडम समस्त 'ससान डुग्धकों देती हैं तैसे ोत।किन्शित




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