कला | Kala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रमिव्यंजना रही हे । इसीलिए कला को एक हो अरणा होते
ए भी कलाकार्यें की झतठियों में झाकाश-पाठाल का तर पड़
गा है स्तर अंतर पड़ना स्वामादिक मो है। देश छोर काल का
शी प्रभाव कला पर पढ़ता हे । इसपर यथा स्थान प्रकाश डाला
तायगा 1 भी इतना ही कहना झावश्यक है कि, भाव सौर
तत्व एक होने पर भी अभिव्यक्ति सें विभिन्नता चाठदी है ।
शेशव जीवन की एक अदस्था हे और च्दादिन सभी अब-
थाओं से सुंदर और मघुर भी; अतः उसके दीत जाने पर सान-
रीय हृदय सें ठरस झयाना स्वाभादिर्ष है; किंतु अ्रस्येक में एक
दैसा तरस होना स्वाभाविक नहीं ।
दिघकार ! रया करुणा कर फिर
मेरा भोता दालापन
मेरे य्तेबन के झद्धत में
च्दित कर दोरो पादन ?
“--पम्त
कहाँ दद्द देप दासना होन १ कदाँ झद दह झरकषम रजुरक्ति
हद सुर ठक व्ते भी लिन पास -दिहस कर ले चने की शर्ति ? ः
लिया निष्ठुर योदन ने छीन ! दनाया डुश्डमय जग का दास !
स्दिगठ शेशद ! उस सुख का एक-वद्िडक जा दीटा झाइझर पास 1!
--दिस पक
भ््दे
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