कला | Kala

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Kala by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रमिव्यंजना रही हे । इसीलिए कला को एक हो अरणा होते ए भी कलाकार्यें की झतठियों में झाकाश-पाठाल का तर पड़ गा है स्तर अंतर पड़ना स्वामादिक मो है। देश छोर काल का शी प्रभाव कला पर पढ़ता हे । इसपर यथा स्थान प्रकाश डाला तायगा 1 भी इतना ही कहना झावश्यक है कि, भाव सौर तत्व एक होने पर भी अभिव्यक्ति सें विभिन्नता चाठदी है । शेशव जीवन की एक अदस्था हे और च्दादिन सभी अब- थाओं से सुंदर और मघुर भी; अतः उसके दीत जाने पर सान- रीय हृदय सें ठरस झयाना स्वाभादिर्ष है; किंतु अ्रस्येक में एक दैसा तरस होना स्वाभाविक नहीं । दिघकार ! रया करुणा कर फिर मेरा भोता दालापन मेरे य्तेबन के झद्धत में च्दित कर दोरो पादन ? “--पम्त कहाँ दद्द देप दासना होन १ कदाँ झद दह झरकषम रजुरक्ति हद सुर ठक व्ते भी लिन पास -दिहस कर ले चने की शर्ति ? ः लिया निष्ठुर योदन ने छीन ! दनाया डुश्डमय जग का दास ! स्दिगठ शेशद ! उस सुख का एक-वद्िडक जा दीटा झाइझर पास 1! --दिस पक भ््दे




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