महाजनवांष मुक्तावलि | Mahajanvansh Muktavali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Mahajanvansh Muktavali by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
महदाजनवश मुर छा ष ट् हे सौतम ! इसतरे पर भस्मरासी ग्रह मेरे जन्मरासीपर मेरे निर्वाथ वाद आायगा इसकारण जैनघमका उदय २ पूजा सत्कार कम होता जायगा तब महाप्रभावीक आचार्य २१ हजार वर्षका पंचम आरेमें २३ बखत जेनधर्म घढाते २ उद्योत करते रहेगें मेरी शासन अखंड २१ हजार वर्ष च्ठेगा चतुर्विषसंघ रहेगा एसा लेख निर्वाथकढिका वगेरे अंथोंमें ठिखा है. इसीतरे जैनपर्मका स्वरूप भगवद्दचनसें जाणकर जिन २ आचायेनिं जेनघर्मकी आवादी करी नींव पुखताडाठीसो संक्षेप बृत्तांत इहां दरसाते हैं इन जैनधमके ठाखों श्रावक चणणणेवाठे पड़ते काठमें उद्योतकारी जादातर अव्वल तो सवाठाख घर राजपूतोंके महाजन वंशक्ते १८ गोत्र थापणेवाले पाश्वेनीयस्वामीके छठे पाटधारी श्रीरल प्रभसूरिश्वाद ५९ गोव ठाखों घर मद्दाजन वणाणेवाले श्रीमहावीर स्वामीके ४३ में पट्टघारी श्रीजिनवछभसूरि। एक ठाख तीस दजार घर राजपू्तोंकों म- हीजन,चणागेवाठे दादा शुरु देव श्रीजिनदत्तसूरिः हजारों घर मद्दा- जन घणाणेवाठे मणिधारी श्रीजिनचंद्रसूरिः इत्यादि फेर गुजरात देसमें , लाखों घर जैनधर्मी श्रावक चणाणेवाठे मठधार हेमसूरिः पूर्ण तू गछी श्रीहेमाचाय और छुटकर गोत्र के २ औरभी अत्पसंक्षासे ओरभी आचार्योनिं घणाये हैं जादा इतिहास सर्व गोत्रोंका ठिखणेसें लाख शोक संक्षा दोणा संभव है इसवास्ते जादा तर प्रसिद्ध २ गोन्रोंका इति- हास ठिखते हैं, सबसे पहले माहाजन १८ गोन्रओोसियां पट्टणसें प्रगटमये ये पट़ण विकम संवतके पहले चारसे चर्पके लगवग वसाथा जिसका कारण एसा भया श्रीभीनमाठ नगरीके राजा पमार भीमसेणके पुत्र दे बडा ऊपठ- देव छोटा आसपाठ आसल, उपठदेव राजकुमार ऊदड, ऊधरण, दो. मंत्रियॉंकों संगठे दिल्लीकेसाहान साद साधुनाम महाराजाकी आज्ञाले खओसियां पट्ण नग्न वसाया राजाकी द्विफाजतसें चारॉवर्णके करीब ४ लाख घर धसगये जिसमें सवाठाख” घर वो राजपू्तेंकि- थे तीस वर्ष जय राज्य करते व्यतीत भया राजा प्रजाका धर्म देवीउपासी वाम




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now