अंतिम साक्ष्य | Antim Sakhshy

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Antim Sakhshy by चंद्रकांता देवी - Chandrakanta Devi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about चंद्रकांता देवी - Chandrakanta Devi

Add Infomation AboutChandrakanta Devi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
| शान समा'त कर मीना घर जाने के लिए जिद करने लगो, तो सैलाग ने प्रताप को लाइ-भरे स्वर“ में डांट पिलाई, “जीजा जी ! आप मद लोग बोच में बेटे रईगे, हो हम गाना-दाना बंद कर देंगे प्रताप अपने अतिरित उत्साह पर थोडा झेंपकर वाटर वा गए, । कलाश ने उनकी मोहासवत दृष्टि को हिकारत की नजर से देखा था । दाद में फैलाश की परमाइश पर भीला ने कई गीत सुताएं, बाधी राव्र तक । रात के अधेरे को चीरते द्द-भरे सुरोले स्वर दिलों में हुक उठाते रहे । प्रताप सो न सके, उप्त हुक को अपने सीने के भीतर मट्सूसते रहे ! है नहीं हूं नगमए जाफिजां, मुझे सुन दे: कोई करेगा अदा, मैं बडे बरोग की हू सदा, किसी दिल जले को पुकार हूं । बीजी के आदेश पर विकौ-सुरेश सीना को 'मोना मौसी कहने लगे। एक-दो बार का औपचारिक मिलन अच्छो-खासी मित्रता में कब और कंसे ददल बया, न मीना जान सकी औरत बीजी ही । भीजी वो मीना था गरिसापूर्ण गांभीर्य पसन्द आया । प्रताप ने उसकी खामोश बांखो में सागर को हरहराहट महंभूस की । उस पर सीता को तिलिस्म-भरी आवाज से वे जिधकर रह गए । प्रताप ने पहली सुलावात मे ही इस उदास आंखों बाली लधगीनुमा औरत से मुंदी के अदृश्य अनुबंध पर इस्ताकर कर दिए । हमेशा अपनों सूझ-बूस और दूरदशिता से बम लेने वाले प्रताप, उस समय न सोच सके कि अपनी छोटी- सो गृहस्यी, उन्हें इस प्रकार के लुके-छिपे सम्बन्ध की इजाजत 7 नहीं देगी। अपने कतंय्यो के प्रति सबग, कामं.से-द एस रखने बाली उनकी पत्नी सुरजर री रिश्ठे-नातों के प्रति दुछ ज्यादा ही अनुदार थी, पर्तु उस पर भी मीना गा जादू चल गया श्दे




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now