परीक्षामुखसूत्रप्रवचन | Parikshamukhsutrapravachan

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Parikshamukhsutrapravachan  by मनोहर जी वर्णी - Manohar Ji Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अड्टाददा भाग 1. रे है कि- ६ महीने बाद सर यु होगी । तो, यह जो वर्तमान हृदय है यह ६ मद्दीने -श्रागे होने बाने मरणका काय है थाने ,कारण तो ६ महीने बाद होने बला है;। उसका काम यह है--जो ६ मह्दीने पहिले यह श्रसगुन हुआ है । तो गायका भ्ररवादि नही है । धदवादिकको उत्तर पर्याय नहीं है श्रौर कार्य भी नही है । ऐसा जो परिज्ञान है कि यही सब गायोंमें गाय गाय, गाव ऐसे बोघका अझनत्कायंकारण ब्याइवत्ति कारण होता हैन कि कोई गाप स मन्य तत्व है जिसकी वंजदसे गाय, यायकों यह घोघ होता है । हष्टान्तपूर्वक श्रनेक कारणोंमे एक्त्वश्रतिभासका _ दज्धाकार द्वारा विवेचन ध्रनेकोमे एकर्वप्रति मासपनकी घात श्रत्यन्त भिन्न पदार्थोमि ' भी धन्य पदार्थोके निणुंयका ह्ेनुपना देखा जाता है । जंसे पदाथका ' परिज्ञान करनेमे दट्रिय कारण है, पदार्थ कारश है, झणिकवादमें जो बस्तुका परिज्ञान होता है उसके कारण तीन बताये गए हैं. पदार्थ, प्रकाश घौरं इन्द्र । ये तीनों होते हैं तबें पदार्थका ज्ञान होता है । भध्ीर, इन तीनोमें _ पद्थ तो है. तदुत्पत्ति वाला कारण धौर प्रकाध श्रौर इन्द्िय हैं सहयोगो कारण । भ्रर्धात्‌ जो भी शान हुपा है उस जानकी उत्पत्ति पदार्यों से हुई है ! चोकीका ज्ञान हुमा तो इस ज्ञानकी उत्पत्ति चौकीसे हुई है तभी तो ' यह कह सकते कि यह ज्ञान चौकीका दै | इन्द्रिय धर प्रकाश ये तदुत्पत्ति सम्बन्ध रखने वाले कारण नही हैं किन्तु उसमें सहयोगी कारण हैं । तोयो ये तीन कारण कर क्या रहे हैं ? किसी एक पदार्थेका भ्रवगम कर रहे हैं । एक को जान रहे हैं। तो एकताका जानना ध्रभेदका जानना । यह झनेव॑ कारणोमें भी'ट्ो सकता है । इसी ,तरहते गाय धनेक हैं । वे कारण बन गए एक गायकों समभनेके । पर उन गायोमें एक सामान्य घ्म है सामान्य तत्त्व है । तब बढ़ गाय गाय कहलाती है ऐसा नही है । नशिकवादी, लोग सोमान्यकों नही मानें वे विज्षेषको हो मानते हैं । बयोकि विशेष को माननेपर हो क्षणिकवादका सिद्धान्त काण्म रह सकता है । झणिक मानो जायगा तो पदाधपे नित्पत्व सिद्ध हो जायगा । सोमान्य शाइपत है, इसका प्रर्थ है कि पदार्थ नित्य टै तब लणिकबादका ही घ्यापात हो गया । तो लशिकवादी दाकाकार यह कड़ू रहा है कि चीज धत्पस्त भिन्न है, इन्द्िय प्रालोक श्रौर पदार्थ, तिसपर भी ये, तीनोक तीनों एक हो भर्षका बोध करनेमे जुटे हैं. तो देखो ना भिन्न भिन्न होनेपर भी उन कारणोंमिं एकका ज्ञात सेदका शान जिले घ्न्य लोग सामान्य कहते हैं उसका ज्ञान हो जाता है । भौर टूपरा टट्टास्त भी देखिये जैसे: जवर, घान्त करनेकी कोई श्ौपधि पझापी गयी म'नों काढा पकाया गया सो उपभें ८-१० चौजें रहती हैं। हो वे ८- 1० चीजे भिन्न भिन्न है हर भी देखो उन ८-१० चीजोके कारणस एक काम बन गया ज्वरका उपयामन हो गया । तो झत्यन्त भिन्न कारणोमे भी एकत्वफा बोध हो ज्यया करता है इमसे कही यश मे समकना कि बहू एकत्व का सामान्य है ध्रथवा कोई बमेद सटश घर्म है । घंत्राकारका यहा यह भ्रासय है कि सामान्य नामका तत्त्व पदार्धम नहीं है । सब विशेष हो दिये है भौर कद! बिनू सामान्यका जो चोघ होता




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