श्री कापरड़ा स्वर्णजयन्ती महोत्सव ग्रंथ | Shri Kaparada Swrnajayanti Mahautsav Granth

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Shri Kaparada Swrnajayanti Mahautsav Granth by मिश्रीमल जैन - Mishrimal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दो धाब्द 8 भौतिकवाद के इस युग मे कहा जाता है कि ऐसे ग्रथो की क्या श्रावदयकता है तो इस सम्बन्ध में हमे केवल इतना ही कहना है कि झरवो रुपयो के मूल्य वाले इन तीर्थों का इतिहास ध्मं का मुलाघार है श्रौर उतना ही श्रावश्यक है जितना कि धर्म की घारणा जरूरी होती है । इस ग्रथ को सुन्दर वनाने मे भरसक प्रयत्न किया गया है । भ्राशा है यह पाठकों को रुचिकर होगा । शुद्धिपत्र समय के झ्रभाव मे तैयार नही हो सका । श्रत जहाँ भूल नजर ्रावे सुधार कर पढे । यह ग्रथ इस तीथें की स्मृति के लिए उपयुक्त है । साथ ही इसकी स्मृति बनी रखने हेतु पादइवेंकुलज वन रहा है उसमे मेरे पत्र व कहने मात्र से जिन सज्जनो ने १००१) रू मडाने की कृपा की है उनको मैं धन्यवाद दिए बिना नही रह सकता । उनके नाम निम्न- लिखित हे -- श्री माणकचन्दजी बवेताला, नागौर निवासी, मद्रास ,» देवराजजी इन्द्रचदजी सेठ जेतारण ,, ... तीरतुरपुण्डी ,, रिखिबचदजी पारसमलजी ,, वेगलोर सिटी . ,;, विरदीवचन्दजी पारसमलजी मेडता ,, का ,, भी कमचन्दजी लालचदजी पाली... ,, ।+ सुरजमलजी घनराजजी गोलिया, जोधपुर ७. ,, कनयालालजी सेठ, जैेतारण निवासी मद्रास कद ८ जे «७ मैं श्री केवलचदजी सा. खटोड, जेतारण निवासी हाल मद्रास का पु्ण श्राभारी हूँ जिन्होंने मेरे पत्र के पहुँचते ही इस तीर्थ पर चेन्न मास की सिद्धचक्र भ्रोलिएँ श्रपनी श्रोर से करवाने की स्वीकृति दी । श्रन्त मे में फिर पाठकों व सब सज्जनो से क्षमा मागता हूँ यदि मेरे व्यवहार से, पत्र से या श्रन्य किसी तरह से उनको कष्ट पहुँचा हो । मैंने केवल श्रपने कत्तेव्य का पालन किया है। अधिष्ठायकदेव ऐसे शुभ कार्यों मे मुझे सद्वुद्धि व सहयोग दे श्रौर यह तीथ दिनोदिन उन्नति करता रहे इसी शुभ कामना के साथ शझ्रपने दो शब्द' का यह लेख पुर्ण करता हूं । कृपा काक्षी मोतीचौ क, जोधपुर | मानचन्द भण्डारो दि० १०-३६ ग्रथप्रचन्घक




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