उपनिषदों में काव्यतत्त्व | Upanishadon Men Kavyatattv

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Upanishadon Men Kavyatattv by कृष्णकुमार धवन - Krishna Kumar Dhawan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाए उपनिषदों मे काय्यतत्त्व शाली शिखर के समान विद्वानों को शभ्रभिभुत करता रहा है श्रौर इस कारण उसके अझन्तस्‌ में प्रवाहित होने वाली काव्य-मन्दाकिनी की झोर उनकी दृष्टि ही नहीं गई । उपनिपदो में यद्यपि प्रभुसम्मित वावयों की प्रधानता है, पर देखा जाय तो कान्तासम्मित वाकयो वी भी वहा बमी नहीं । इतना होते हुए भी, इन महान श्राप ग्रन्था का काव्यगत अध्ययन कहीं इनकी पविन्नता को खण्डित न कर दे झथवा इनके गौरव को किसी प्रकार हानि न पहुँचा दे, सम्भवत इसलिए काव्य के रूप म इनका अध्ययन उचित नहीं समया जाता रहा । परन्तु, उपनिपदा की रचनाशेली बताती है वि ऋषित्व श्रौर कवित्व, दशन श्रौर कविता परस्पर विराधी न होकर एक दूसरे के पूरक है । वेद ही नहीं; भ्रपितु निखिल ब्रह्माण्ड भी ईश्वर का काव्य है । ऐसी स्थिति म ईश्वर श्रौर उसकी सृप्टि के गढ़ रहस्य का प्रकाशन करने वाले उपनिपद्‌ काव्यत्व से शून्य कंसे रह सकते है? भरतमुनि ने इसी कारण नादूय के सभी अगा वी उत्पत्ति वदा म ही मानी है । राजशयर ने भी ्रयो झर श्रान्वी क्षिकी के उपरान्त साहित्य विद्या को पाचवी विद्या मानत हुए उसे चारा विद्याध्मो का निप्यन्द माना है तथा श्रलकार शास्त्र को सप्तम वदाग भी, क्योकि इसके विना वेदार्थ व ज्ञान सम्भव नही श्रत वेदा ब्रार उपनिपदो वे भ्रन्य पक्षा के श्रध्ययन के साथ १... जप्राह पाठपमृष्वेदात्‌ सामभ्यों गोतमेव थ । यजुरवेदादरिनपान रसानाथवणादपि ॥ बेदोपवेद सम्बद्ध नाटपवेदों महार्मना । एवं भगवता सृप्टो द्रह्मणा सलितात्मक ॥। जाना घाव, ११७ १८ २. ९घमो साहित्यदिदा इति पायावरोप । सा हि चघतसूणामपि विधानां निष्याद ॥। शिला बस्पों स्पाइरण निष्यत एदोविदिति ज्योतिय घ घडगानि' इत्पाधार्या । उपकारवरयादलशार' सप्तमपगमू” इति यायावरीप । भरते ले तारवद पर्परिशानादू देदार्धानवगति ॥ नाक सीन, टिवोयाध्याय, शास्त्रनिदेद




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