वायु - पुराण खंड १ | Vayu Puran Khand 1
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
527
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
वेदमूर्ति तपोनिष्ठ - Vedmurti Taponishth
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श्रीराम शर्मा आचार्य - Shri Ram Sharma Acharya
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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लगे । अब उनकी कीत और यर्मी से सी कष्ट होने लगा, इससे उन्होंने घर
बनाने आरम्भ किये 1 दृक्ष की शाखायें जिस प्रकार मागि-पीछे, कपर-नीचे भौर
इघर-उधर फैली रहती हैं उसी प्रकार काठ फैलाकर उन लोगों वे घर बनायें ।
चृक्ष-शाखाओं की तरह चनाये जाने के कारण ही उनका नाम “शाला पढ़
गया । जब वृष्टि से नदी, नाले, गड्ढे भर गये तो प्ंथ्वी रसवती होकर शस्य-
शालिनी हो गई । बिना जोते वोये 'वोदह प्रकारकी वनस्पत्तियाँ गाँवों के समीप
गौर जज्भुलों में उग बाई । उन्हीं का उपयोग करके उस समय के लोग
निर्वाह करते लगे । पर जब उनमें भेदनाव और स्वाथंपरता का भाव चढ़ा वो
लोग फल लेते समय पुष्प और पुष्प लेते समय पत्ते भी तोड़ लेते थे । इससे
चे सब वनस्पतियाँ भी क्रमशः नष्ट हो गई भर लोग फिर भुष्न-प्यास से
ब्याकुल होते लगे । तब लोगों ने प्रयत्न करके वनस्पत्तियों के बीजों का पता
लगाया और स्वयमु उनको जोत-वोकर उत्पन्न करने लगे । फिर उनमें कर्म-
चिभाग भी होने लगा और ब्राह्मण, क्षत्रिय भादि विभिन्न वर्णों की स्थापना
की गई 1
बेदिक तत्वों और पौराणिक उपाख्यानों का समन्वय--
पुराणों में देवताओं, ऋषियों, राजाओं के सम्बर्ध में जो घटनायें और
कथानक दिए गये हैं, वे एक निष्पक्ष पाठक को बहुत ही अतिरंजित थी
अनेक वार असस्भव से ही प्रतीत होते हैं । इसका कारण खन्वेपण करने न
चिद्वातों ने यही बतलाया हैं कि पुराणकारों ने अलौकिक वैदिक तत्वों को वाः ते
तथा अलंकार की शैली में ढालकर लोकिक्र-कथाओं का रूप दे दिया दर दी
संग्राम की कयायें इसका स्पष्ट प्रमाण है। इन्द्र और बुबासुर के सं: गखुर-
चेदों में भी कुछ अंगों में घटनार्मक ढज़ से लिया है, पर उनके विसिनत घषे को
का मिलान करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि उसका लगी दिस स्थलों
द्वारा बादलों से चर्पा कराने के अतिरिवत घर कुछ नहीं हो का की शक्ति
ब्राह्मण में एक स्थान पर इस तथ्य को स्पष्ट शब्दों में हा त गत्तपय
गया हैं-ण द कर दिया
त स्व युयुत्ते फतमच्चनाहने तेश्मित्रो भी
सायेत्सा ते यानि पुद्धान्याहुर्ाय कि गन दी
जे ग्प्
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