खेती की शिक्षा | Kheti Ki Shikchha

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Kheti Ki Shikchha by पं० शंकरराव जोशी - Pandit Shankarrav joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ १४ अंग को कम । अतएव काफो अन्न न मिलने के कारण पौद निबंल हो जाता है और तब घारें घीरे सूखने लगता हैं । ३--पानो भरा रहने से हवा मिट्टी में प्रवेश नहीं कर सकती । ज़मीन में के खाद्य पदार्थो को जड़ो-दारा ग्रहण करने योग्य बनाने के लिए हवा की अत्यन्त आवश्यकता होती है । सूखी मट्टी हवा में प्रचेश कर सकती है । ४--पानो झरा रहने से पोदों की जड़े सड़ जाती है । पू--खाद के साथ बहुत सा बिना खड़ा कचरा-झूड़ा खेतों में श्रा गिर्ता है । उष्णता के बिना यह सड़ नहीं सकता श्र पानी के कारण उष्णता का अमाव सा ही रहता है । इन सब दोषों को दूर करने के लिए यह झत्यन्त श्ावश्यक है कि पादी के निकास की व्यवस्था की जाय । ज़सीन मैं नालियाँ खोद कर पानी के निकास की तजवीज़ की जा सकती है । सारतवर्ष में अधिकतर खुली नालियाँ हो बनाई जाती हैं । ये नालियाँ ज्यादा चौड़ी और कम गहरी होती हैं । कहीं कहीं तीन फीट की गहराई पर पत्थर या मट्ी के नल रख कर पानी के निकालने के लिए मार्ग बनाया जाता है। यह पद्धति बहुत अच्छी है । इससे नीचे लिखे हुए लाश होते हैं -- १--बरसात का पानों मिट्टी में से होकर नोचे उतरता है । बरसात का पानी वातावरण में से होकर ज़मीन पर मिंश्ता है इस प्रवाह में वह वातावरण में से कुछ वमस्पति-पोषक




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