मैं भूल नहीं सकता | Main Bhool Nahin Sakata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साताजी रण
मामला हैं ?” साकूम हुआ कि चाय के प्रचार करने के लिए चाय-वगीचो
के मालिकों की तरफ से गगा के तट पर कंम्प लगा हैँ, वहा चाय मृफ्त
बाटी जा रही है । उनका तो काम चाय के प्रचार का था, लोगों को मुफ्त
चाय पिलाते थे, ताकि आदत पड जाय । माताजी का विचार था कि दूध-
दही खाने की देश में आवष्यकता हूं और चाय से हिन्दुस्तान में स्वास्थ्य
खराब हो जाता है, भूख कम हो जाती हैं । मुझसे कहने लगी कि तुम
सरकार वाले थोड़ी आमदनी के लिए भारत का सत्यानाग करते हो ।
माताजी की बोलचाल मीठी और गभीर होती थी । व्यर्थ वार्तालाप
और कोरे बकवास से उनको घृणा थी । अन्त समय तक उत्सुक थी कि
वह कुछ नई बाते सीखें और जानकारी को बढावे । शान्ति की मूर्ति
थी । मेने कभी उन्हे क्रोघित होते नही देखा । न कभी हर्ष होता था, न छेष
करती थी । सुख-दुख में समान रहती थी। रोने-घोनें की आदत नही थी ।
घर में बहुत नादिया हुई, लडकियों के बिदा होने के समय घर-भर रोता
है और आसू गिराता है , परन्तु माताजी बेसी-की-वैसी ही थान्त रहती
थी । मेंने कभी भी एक आसु गिराते उन्हे नहीं देखा और अगर बेटी, पोती
माताजी से अलग होते समय रोती थी तो उसको माताजी मना करती थी ।
माताजी ने दुख भी उठाए, बड़ी प्यारी पाली-पोसी ब्याहता बेटी-पोती
उनके सामने गुजर गई , लेकिन उस सदमे को भी उन्होंने बहुत सब्र,
लान्ति तथा हिम्मत के साथ झेला ।
हरेक के साथ उनका बर्ताव अच्छा होता था। मैके मे एक भाई गोद
आया था । ननद-भौजाई मे मेने ऐसा मेल नहीं देखा । लगता था, जैसे दो
सगी बहने हो । मेरी मामी मुझे बेटा समझती थी और में उनको माता
के समान मानता था । उन्हीके घर जाकर मेने लाहौर में ५ वर्ष
रहकर बी० ए० पास किया । मेरे मामूजी की सन्तान और उनके जमाई
दीवान बहादुर ब्रजमोहननाथ जुत्शी को मेरी माताजी से जैसा प्रेस था
उसका मे वर्णन नहीं कर सकता । ,अपने घर मे माताजी अपनी बेटियों
से ज्यादा बहुओ को प्यार करती थी । कहती थी कि बेटिया तो दूसरों के
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