गाँधीजी और गो-सेवा | Gandhiji Aur Go-Seva

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Gandhiji Aur Go-Seva by देवेन्द्रकुमार गुप्त - Devendra Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाधीवी के प्रयोग 5 पैदा हो, इसलिए याव के कुछ योंडे पढे-लिखे कार्यकर्ताश्रो को गोथाला के व्यवसाय में स्थान दिया गया आ्रौर दूध की परीक्षा तथा प्युद्गा की देखभाल श्रादि उन्हीके ट्वारा की जाने लगी । यह सब करते समय खर्च पर भी चियच्रण था । गांधीजी नुकसान गहन करने को तैयार नहीं थे शोर न हम लोगों को कर्ज आदि देने के भान्नद में पड़ना चाहते ये । हम मानते थे कि कर्ज लेगे-ढेने से सवध ज्यादा दिन तक मघर नहीं रहते । सेवा-कार्य में बाधा थ्यती है रसलिए प्रथा चुरू ढी कि पथुपालक को मिलनेवाले दूध के दाम में से ही एक कोप बनाया जाय य्ौर उसका उपयोग सहकारी ढग से गाय य्रादि खरीदने में हो । कुछ समय मे एन खासी रकम उच्ट्टी होगी आर कार्य करने से श्रासानी होगी । दूध म्रच्छी मात्रा से इकट्ठा होने लगा 1 इनने दूध का मम में उपयोग नहीं हो सकता था, इसणिए दूध के प्रचेल पदार्प बनाये जाने लगे । सावरमती-झाश्रम में खोया बनाया जाता था, पिन्तु य्राहार एव श्रापम की घी की माग पूरी करने के लिए ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा । दूघ ज्यादा समय रख सके, इस- 1 लिए ४ देद्ती डउग से 'किडेस्ड' दघ बसाना भी रू किया गया । प्रथ नए ददाता इन से कडरूड दूघ वनाना भा सुर वकया गया । मं हनन मिड कय हि का करन कफ दा ज्न्रा द्हूत छोटे प्रमाण में थे, किसतु इन म्चुसदों वा पसर काफी हुआ । द ट कप प्राप्त मिड नि न थे पालवबते विधा गोपातन-सवधी यो भचुभव प्राप्त होते थे, उन्हें गोपालदों तक कर परूभाड अब प्ल्ण सर ज तण था ५ नव ना न कस्ायाया गोंघाला मा त्यान के ।लए प्राथक्षण को व्यवस्था को सझ । कु जवान गाधाला चयन ७ मे रहयार अनुभव प्राप्त करन लग | व पवन खच बदन काफा बचा वह योयाना तथा रेती में काम से निकाल $» बे ते थे |




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