भक्तमाल स्तोत्र | Bhaktamal stotra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
338
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८९ ब्रह्म के चार पाद (3) ड ,
'मकार क्र पुष्प है। इसके उन्तार पे मुस का सर्वधा मकान हो जाना रै। पी आप्दूय कर ।
इसे बोलने ममय दोनो ओठ चिपक जाने है और जो भीनर है वह भीतर जा बाहर ह वह बाहर सकन्टहर
जाता हैं इस तरह मे अलर्ुसता का मूशरपान है।
९० ब्रह्म के चार पाद (४) सी
प्रकार के वाद की अर्डमात्रा परात्पर वी सूचक है। इसमे शास्त्र का हस्तलष नहा ह। सह
स्वानुभव का विएय है। इस नरह ओम अव्यय अक्षर भर एवं पत्ता का महायाग एक
अलौकिक अिप्रतिम अस्नित्व हैं।
९१ ओमेन
माई धर्म भी ओम को ओमेन 00061 के रुप में मानना है। आमने 05016 || ओम्मेन ) से
निसुत शद्ध है। 05 | ओम) का अर्थ 'मुमर' है। एप य्यु्पनि के अनुमार यह त॥९ | आम ) गम हे
जिसका अर्थ 'ूनना है। दम तरह ओम बण्ठ-से-ओप्ठ नथा ओप्ठ-मे-कर्ण नकवी याया है दीत बैस ही
ओपन भी मम से कान नक दा प्रेरक आध्यात्मिक सफर है। बहा जाता है कि जैसे स्वस्तिव काम में
रूपान्तरिन हआ दैस ही ' ओम 'ओमेन वन गया।
ः ९२ आमीोन
'ओम' का टस्लाम मे भी सवन्ध दिखायी पटना हैं। यहाँ यह आमीन वे रूप मे प्रचलित, प्रियुवन है।
ओम का अ' अल्लाह है। परमेश्वर रूप है। वेसे भी अलला स्वयं सम्नन शब्द है जिसके मायने है ज माता
पराशत्रिन परमात्मा इस तरह ओम एक सम्प्रदायातीनमार्वभौम णब्द है।
९३हु
निव्चन के वौद् भिलुक बर्फीलि मौसम मे भी अपने शरीर से पसीना निकालने पे समर्थ है। ऐसा
करने के लिए ये ७ मणि पढुभे हू मन्त्र का दीर्घ-अविराम उन्लार करने है। हू (400 ओम का ही
सूपान्तर है। इसे ई्वर की जीवती-शब्रित निस्पित किया गया है।
९४ सिद्धशिला
जैनप्र्म में निर्वाणधाम अईचन्द्राकार माना गया है। दस सिद्रेशिला कहा गया है। नईचन्द्र के मध्य
में जो विन्दू ह, वह मुक््तात्मा का प्रतीक है। नि शव्द की यात्रा में जब्द अंगुली छोड़ देना है। वह थक पटना
ह नाम गत्र अब नहा रहता तब्र ममम्न अन्नराय टूट जाते हैं और चेनना अपने उप काल में आ जाती
ही मन भाग बह विराट शनि है, जो बहिरात्मा के परिधान फेक कर परमात्मा दे रूप ऐ व्यवन
होनी है।
९५ 'भटान
__ मुदान | भोट देश) के वौद्र अपने धर्म-कर्म आदि में 'ओ हन हु' णत्ध या उच्चार बरतें है। इन
नाना ध्वनियो को वहीं ऋपमण गुद्ठ भुर्म और मघ माना जाता है।
ओम 7०० तथ्य 2 सतह
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