नागरीप्रचारिणी पत्रिका भाग - 3,4 | Nagari Pracharini Patrika Bhag - 3,4

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Nagari Pracharini Patrika Bhag - 3,4  by प्रो. चंडीप्रसाद - Prof. Chandi Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२२८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका ठीक ठीक घड़ी में देख ले' और जब रात में दूसरी दृश्य-वस्तु दिखाई पड़े तो उसकी नति-घटी पढ़ ले' और समय देख ले । सूय्ये की गति तो ठीक मालूम है, इसलिये उतने समय में जितनी चाल *निकले, उतना समय मिलाने से दृश्य वस्तु के विषुवांश का माप मिल जाता है। क्रांति और बिषुवाश दोनों मिल जाने से उनकी स्थिति ठीक हो जाती है। छौर गणुना* से उनके विक्षेपाँश ( खगोलीय अक्षांश ) और रेखांश झा जाते हैं। पंचांग में तारों के रेखांश और गति दी हुई रहती हैं। बिषुवत्‌ का भी माप ले लेने से हिसाब पूरा हो जाता है और पंचांग की सिद्धि मालूम दो जाती है । यदि ध्यान से देखा जाय और दोनों यंत्रों में समय पढ़ा जाय तो चारों पढ़ाइयाँ एक दी समय में एक नहीं होतीं वरन्‌ चार होती हैं । एक दी सम्राट के उत्तर-दक्षिण भुजाओं का समय भी एक नहीं पढ़ा जाता। पंडित बापूदेव कहते दै कि बड़े सम्राद्‌ की भुजाएँ एक एक इंच लटक गई हैं। परंतु मेरे मतानुसार, शंकु कुछ नीचा बना है और सुजाएँ भी पूव-पश्चिम और दत्तर-दक्षिण झुकी हैं। मापने पर ज्ञात हुआ कि चारों भुजाओओं की श्रिज्याएँ बराबर हैं, उनमे कोई भी बढ़ी हुई ' नहीं है। कितनी कितनी झुकी हैं, ठीक नहीं बताया जा सकता ।. घड़ी को शट्मुद्ध कह देने से किसी यंत्र को छोड़ा नहीं जा सकता । सब घड़ियों या यंत्रों (की श्रुटि नापकर संस्कार किया जाता है। व्यवहार का यही नियम सब देशों में, है। दक्षिशासर मित्ति यंत्र -बडे सम्राट यंत्र के शंकु की पूर्वी दीवार पर दक्षिणोत्तर भित्ति-यंत्र अथवा दे मित्तिथ्यंत्र बने हैं। यह दोबार ठीक उत्तर-दक्षिण है। जब सूय्ये या दृश्य-वस्तु याम्यत्तर पर आती है, इस १--पुराने समय में ऐसे नक्षत्र-यंत्र घातुभ्नों के बने रदते थे, जिनमें माप के चिह्न भी रहते थे । इससे नति-घटी के लंकोदय में झासानी से, बिना गणना के ही, पढ़ लेते थे । आजकल भी इसी तरह के 31त6 पप105 ( विसर्पोगशुक है का प्रयोग इंजीनियरिंग विभाग में किया जाता है |




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