आत्महीनतुपय सुगुनावली | Aatmahitupay Sugunawali
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हु फये
उपनां संभव नाम कहायो रे ॥ संभव» ॥ १ | लछन
अश्व तणो हद सोहे च्यारसो घड़ुष शरिरा। साठ
लाख प्रख्नूं आय पाम्यां भव जल तीगें रे । सं-
मव० ॥ २ ॥ इक सय दोय थया सुनि गगा 'घर
दोय लाख अगगधारो। तीनलाख पुनि साठ सहस
शिग. समगी तगों परिवारों रे । संभव ० ॥ ३॥ से-
मव जिनको नांग जप्यांधी पामें शिव पुर राजा
- तीन लोकके साहिव स्वामी तारन तिरन जहाज
संभव ॥ ४ ॥ उगयी से चाएन मगशिर . सित
चौदस मंगल दारो । ग्लावचद कहे संभव जिनको
स्मरण महासवकारों रे । को मविका० ॥ शे ॥
अथ ४ अभिनंदन जिन स्तवनम
राग काफी
कयोरि तोय लाने न अंडे भटकत यगा धक्ति दार। एचाल
चदारिया जिन वचनोंकी . बरस रही सुख
दाय ॥ ( आंकडी ) केवल ज्ञान घटा प्रकटी ते
लोकालोंक स्वभाव जानत प्रंमुजी जीव चराचर छा
ना वस्ठ न काय ॥ वंदारियो० ॥ १ ॥ चचनासत
दखत घुनि गरजत मविजन सुन दखांय स्पांद
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