आत्महीनतुपय सुगुनावली | Aatmahitupay Sugunawali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : आत्महीनतुपय सुगुनावली  - Aatmahitupay Sugunawali

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हु फये उपनां संभव नाम कहायो रे ॥ संभव» ॥ १ | लछन अश्व तणो हद सोहे च्यारसो घड़ुष शरिरा। साठ लाख प्रख्नूं आय पाम्यां भव जल तीगें रे । सं- मव० ॥ २ ॥ इक सय दोय थया सुनि गगा 'घर दोय लाख अगगधारो। तीनलाख पुनि साठ सहस शिग. समगी तगों परिवारों रे । संभव ० ॥ ३॥ से- मव जिनको नांग जप्यांधी पामें शिव पुर राजा - तीन लोकके साहिव स्वामी तारन तिरन जहाज संभव ॥ ४ ॥ उगयी से चाएन मगशिर . सित चौदस मंगल दारो । ग्लावचद कहे संभव जिनको स्मरण महासवकारों रे । को मविका० ॥ शे ॥ अथ ४ अभिनंदन जिन स्तवनम राग काफी कयोरि तोय लाने न अंडे भटकत यगा धक्ति दार। एचाल चदारिया जिन वचनोंकी . बरस रही सुख दाय ॥ ( आंकडी ) केवल ज्ञान घटा प्रकटी ते लोकालोंक स्वभाव जानत प्रंमुजी जीव चराचर छा ना वस्ठ न काय ॥ वंदारियो० ॥ १ ॥ चचनासत दखत घुनि गरजत मविजन सुन दखांय स्पांद




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now