समाधि | Samadhi

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Samadhi by गणेश पांडेय - Ganesh Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शन्घी मालिन ] निदडिया ने हँस भर दिया; कुछ कहा नहीं । ग्ठकास ने उस पुष्प-गुच्छ के अपने बटन के छेद में पिन्हाकर वहाँ से प्रस्थान किया । जाते-जाते छुडियास ने पूछा--तो यह मालिन तुम्हारी स्नेह-सं गिनी है ? ही “हाँ, यह अच्छा गाती है। इसे पसन्द करने का एक और भी कारण है । इसकी जन्म-भूमि थेसाली है, जो हम लोगों के पूज्य देवता की आवास-भूमि है । “डाकिनी का देश !”” “सत्य है! मेरी तो. राय है कि रसणी-मात्र ही डाकिनी हैं । विशेषतः पस्पियाई के प्रत्येक दश्यनसे मानो प्रेम फूटा पड़ता है ! न जाने क्यों, पम्पियाई की युवैतियों के देखते ही मेरा हृदय पुलकित हो जाता है ।” ठीक उसी समय, एक अवशगुश्ठनवती सुन्दरी, उसी रास्ते से; आ रही थी । छडियास ' बोला--यह देखो, मेघ के बिना चाहे ही जल ! क्या तुम इस सुन्दरी के पहचानते डो ग्लकास, यद्द डायामिड की कन्या--सुन्दरी जुलिया--है। कुछ और पास आने पर छुडियास उस रमणी का अभि- वादन करके बोला--सुन्द्रीः जुलिया ! अच्छी तरह से होन? जुलिया चघूँघट के कुछ हटाकर; हँसती हुई; बोली-- हाँ, एक तरह से अच्छी ही हू ! र्ध




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