दृश्य सप्तक | Drishya Saptak

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Drishya Saptak by के. सत्यनारायण - K. Satyanarayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्् परिवतिंत करनेवाले नाटककारों में डा० रामकुमार वर्मा अप्रगण्य हैं । सन्‌ 1985 से 40 तक एकांकी द्रुतगति से हिन्दी में अपना अस्तित्व जमाने लगा । इस दिशा में ' हंस ' मासिक पत्निका के दूवारा भी काफी प्रोत्साहन मिला 1 उपेच्द्रनाथ * अश्क ', सेठ गोविन्द दास, उदय शंकर भट्ट जेसे घ्रातभावान एकांकीकार अवतरित हुए । सन्‌ 1946 या 47 के बाद एकांकी का फिर नया मोड़ आया । एकंकी की कला ही नहीं निखर गयी बल्कि उसमें विभिन्नता भी आ गयी । सानव के अन्यान्य क्षेत्रों का संघर्षमय जीवन एकांकियों में प्रतिशिम्बित होने लगा और मनोवैज्ञानिक तथा अन्तंद्रन्द्वात्सक रंग एकांकी बड़ी सफलता के साथ निकलने लगे ।. सामाजिक, राजनतिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एकांकियों के अलावा ध्वविन्ताटक, छाया-नाटक, नृत्य लाटक, गीति-नाटक आदि अनेक प्रकार के रंग नाटक निकलने लगे । आज के रंग एकांकीकारों में उपेन्द्रनाथ * अश्क ', जगदीशचन्द्र साथुर, विष्णु प्रभाकर, गणेश प्रसाद दिववेदी, लक्ष्मीनारायण लाल आदि के नाम विशेष आदर के साथ लिए जाते हैं। लक्ष्मीनारायण मिश्र, सुदर्शन, हरिकृष्ण प्रेमी, भगवतीचरण वर्मा जैसे पिछले खेवे के नाटककारों का योगदान भी इस दिशा में कुछ कम नहीं है । आज का हिन्दी एकांकी बडी क्षिश्र गति से अपना विकास कर रहा है। आज के हिन्दी एकांकीकारों में धमंवीर भारती, भारत भूषण अग्रवाल, मोहन राकेश, हरिश्चम्द्र खन्ना, कर्तारसिंह दुग्गल आदि विशेष रूप से उल्लखेनीय हैं। आजकल कई नई प्रतिभाएँ हिन्दी एकांकी साहित्य को सुसज्जित करने में लगी हुई हैं । एकांकी शिल्प-विधि में नये नये मोड़ उद्भासित हो रहे हैं । नयी नयी उद्भावनाएँ पल्लवित हो रही हैं और शैलीगत मौलिक बल्कि मनोरम निखार प्रस्फूटित होता दीखता' है । हिन्दी एकांकी का इतिहास मुश्किल से साढ़े तीन दशकों का है । किन्तु इतनी कम अबधि में उसने अपनी जो प्रगति की है, उसे दृष्टि में




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