जैनाचार्यों का अलंकार शास्त्र में योगदान | Jainacharyo Ka Alankar Sastra Me Yogdan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न ऐप न रसच्युत॒ १६०, अप्रस्तुतार्थ १६१, उभयवोध १६२, अप्रयुक्तन्व १६३, शास्त्रमावप्रसिद्ध १६ ३, अश्लीलत्व १६२, ग्रीडाभिव्यव्जक १६३, असमर्थत्व १६४, कल्पितायत्व से मगसमर्थता १६४, सन्दिग्ध से असमथता १६५, अनुचि- ताथता १६५, श्रुतिकट्ता १६६, क्लिष्टता २६६, अवि- मृष्टविधेयांश १६६, विद्द्धमविकृल १९७, बर्थदोष १६८, कष्टार्थता १६९, अपुष्टार्थता १७०, ब्याहतार्थत्व १७०, ग्राम्यत्व॒ १७०, भअषलीलता १७०, सौकाकता १७१, सम्दिग्धता १७१, अक्रमत्व १७१, पुनरुक्तत्व १७२, भिस्तसहचरत्व १७२, बियद्व्यग्यत्व १७२, प्रसिद्धि- विरुद्धत्व १७३, विद्याविरुद्धत्व १७३, त्यक्तपुनरासत्व १७३, परिवु्त-नियम १७४, परिवृत्त-अनियम १७४, परिवृत्त-सामान्य १७४, परिषृ्त-विशेष १७४, परिव्त- विधि १७५, परिवुत्त-अनुवाद १७५, अपार्थ १७६, व्यथ १७६, भिन्‍नाथ १७६, परुषार्थ १७६, मलकारहीनता १७६, विरस १७७, अतिमात्र १७७, विसदुश १७७, समताहोन भर समतासाम्य १७७, रसदोष १७८, विभावानुमाव की कष्टकल्पना से अभिव्यक्ति १७९, रस की पुन पुन दीप्ति १७९, अनवसर में रस का विस्तार १७९, अनवसर में रस का विच्छद १७९, अभग का अति- विस्तार से वणन १८०, अगी की विस्मृति १८०, अनग का वर्णन १८०, प्रकृतिव्यत्यय १८०, दोषपरिहार १८३, गुणविचार १८५, गुणमेद १८९, भौदार्य १९०, समता और कान्ति १९०, भअर्थव्यक्ति १९१, प्रसन्नता १९१, समाधि १९१, बरेष और ओोज १९२, माघुय और सौकुमार्य॑ १९२, ९३, छोजकस १९४, प्रसाद १९५, भाविक १९७ १९७, गाम्मीर्य १९७, रीति १९७, उक्ति १९८, गति १९८, जौजित्य १९८, सौधम्य १९८, विस्तार १९९, सूक्ति १९९, प्रौढ़ि १९९, उदातेता १९९, प्रेग़ानु २०० सक्षेपक २००, शोभा ०१, अभिमान २०१, प्रतिषेघ ९०१, निसक्त २०१, युक्ति २०१, कार्य २०१, प्रसिद्ध २०१, अझषरसंहति २०१, मिध्याध्यवसाय २०१ ।




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