मजिझम निकाय | Majijham Neekaya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
704
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका
बुडके मूल सिद्धान्त'
बुद्धके उपदेशोंके समझनेमें सहायता सिलेगी, यदि पाठक बुद्धके इन सूख चार सिद्धा-
स्तों--तीन अस्वीकारात्सक भौर एक स्वीकारात्मक--को पहले जान लें । वे घार सिद्धान्त
ये हैं--
(१) ईश्वरको नहीं सानना; अन्यथा “मनुय्य स्वयं अपना मालिक है”--इस सिद्धान्तका
चविरोध दोगा ।
(२) आत्साकों नित्य नहीं मानना; अन्यथा नित्य एक रस माननेपर उसकी परिशुद्धि
और सुक्तिके लिए गुंजाइश नहीं रहेगी ।
(३ ) किसी ग्रम्थकों स्वत:प्रमाण नहीं मानना; अन्यथा बुद्धि और अजुभवकी प्रामाणि-
कता जाती रहेगी ।
( ४ ) जीवन-प्रवाहको इसी शरीर तक परिमित न मानना; अन्यथा जीवन और उसकी
विचिध्ताएँ कार्यकारण नियमसे उत्पन्न न होकर; सिर्फ आकस्मिक घटनाएँ रह जायँगी ।
बोख धर्ममें घार बातें सर्वभान्य हैं। इन चार बघातोंपर हम यहाँ अलग घिचार
करते हैं ।
( १) इंब्रको न मानना
ईभ्वरवादी कहते हैं--'“चुँकि हर एक कार्यका कारण होता है, इसलिये संसारका भी कोई
कारण होना चाहिए; भौर वह कारण ईश्वर हे--लेकिन प्रश्न किया जा सकता है--ईश्वर किस
प्रकारका कारण है ? क्या उपादान-कारण, जैसे घड़ेका कारण मिट्टी, कुंडलका खुवर्ण ? यदि ईश्वर
जगत्का उपादान-कारण है, तो जगत देश्वरका रूपान्तर है । फिर संसारमें जो भी बुराद्र-भलाई,
सुख-दुःख्, दुया-ऋूरता देखी जाती है, वद सभी ई'वरसे और हे'्वरमें है । फिर तो ईश्वर सुखलयकी
अपेक्षा दुःखमय भधिक है, क्योंकि दुनियामें दुःखका पलड़ा भारी है । ईइवर दयालुकी अपेक्षा भर
अधिक है, क्योंकि दुनियामें चारों तरफ़ ऋरताका राज्य है । थदि वनस्पतिकों जीवधारी न भी
माना जाय, तो मी. सूकष्मवीक्षणसे द्रव्य कीटाणुओंसे लेकर कीड़े-सकोड़े, पक्षी, मछली, साँप,
छिपकली, गीदड, भेडिया, सिंह-ब्याघ्, सम्य-असम्य मजुष्य--सभी एक-दूसरेके जीवनके भाइक
हैं , ध्यानसे देखनेपर दृश्य-अदृश्य, सारा ही जगत् एक रोमाँचकारी युद्धक्षेत्र टै, जिसमें निबंल प्राणी
१ यह पह़िले १९३२ इं० के “'विशाल-भारत” में लख-रूपसे निकला था ।
| ड. 1
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