मजिझम निकाय | Majijham Neekaya

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Majijham Neekaya  by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका बुडके मूल सिद्धान्त' बुद्धके उपदेशोंके समझनेमें सहायता सिलेगी, यदि पाठक बुद्धके इन सूख चार सिद्धा- स्तों--तीन अस्वीकारात्सक भौर एक स्वीकारात्मक--को पहले जान लें । वे घार सिद्धान्त ये हैं-- (१) ईश्वरको नहीं सानना; अन्यथा “मनुय्य स्वयं अपना मालिक है”--इस सिद्धान्तका चविरोध दोगा । (२) आत्साकों नित्य नहीं मानना; अन्यथा नित्य एक रस माननेपर उसकी परिशुद्धि और सुक्तिके लिए गुंजाइश नहीं रहेगी । (३ ) किसी ग्रम्थकों स्वत:प्रमाण नहीं मानना; अन्यथा बुद्धि और अजुभवकी प्रामाणि- कता जाती रहेगी । ( ४ ) जीवन-प्रवाहको इसी शरीर तक परिमित न मानना; अन्यथा जीवन और उसकी विचिध्ताएँ कार्यकारण नियमसे उत्पन्न न होकर; सिर्फ आकस्मिक घटनाएँ रह जायँगी । बोख धर्ममें घार बातें सर्वभान्य हैं। इन चार बघातोंपर हम यहाँ अलग घिचार करते हैं । ( १) इंब्रको न मानना ईभ्वरवादी कहते हैं--'“चुँकि हर एक कार्यका कारण होता है, इसलिये संसारका भी कोई कारण होना चाहिए; भौर वह कारण ईश्वर हे--लेकिन प्रश्न किया जा सकता है--ईश्वर किस प्रकारका कारण है ? क्या उपादान-कारण, जैसे घड़ेका कारण मिट्टी, कुंडलका खुवर्ण ? यदि ईश्वर जगत्‌का उपादान-कारण है, तो जगत देश्वरका रूपान्तर है । फिर संसारमें जो भी बुराद्र-भलाई, सुख-दुःख्, दुया-ऋूरता देखी जाती है, वद सभी ई'वरसे और हे'्वरमें है । फिर तो ईश्वर सुखलयकी अपेक्षा दुःखमय भधिक है, क्योंकि दुनियामें दुःखका पलड़ा भारी है । ईइवर दयालुकी अपेक्षा भर अधिक है, क्योंकि दुनियामें चारों तरफ़ ऋरताका राज्य है । थदि वनस्पतिकों जीवधारी न भी माना जाय, तो मी. सूकष्मवीक्षणसे द्रव्य कीटाणुओंसे लेकर कीड़े-सकोड़े, पक्षी, मछली, साँप, छिपकली, गीदड, भेडिया, सिंह-ब्याघ्, सम्य-असम्य मजुष्य--सभी एक-दूसरेके जीवनके भाइक हैं , ध्यानसे देखनेपर दृश्य-अदृश्य, सारा ही जगत्‌ एक रोमाँचकारी युद्धक्षेत्र टै, जिसमें निबंल प्राणी १ यह पह़िले १९३२ इं० के “'विशाल-भारत” में लख-रूपसे निकला था । | ड. 1




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