रेडियो नाट्य शिल्प | Radio Natya Shilp

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Radio Natya Shilp by श्री सिद्धनायकुमार - Shri Siddhanayakumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र रेडियो-नाटय-दिल्प व्यक्तिके अनेक साधन है । रंगमंच-नाटकोंमें वातावरण एवं. परिस्थितियों को सूचित करनेवाले दु्थ्योका उल्लेख करना पड़ता है । रंगमंचपर कामम आनेबाली वस्तुओका भी निदेश रहता हैं। पात्रोंकी रूप-रेखा, अवस्था, शारीरिक गठन, वस्त्रविन्यास, अस्त्र-शस्त्र, अलंकार आदि द्वारा उनके देश, काल एवं व्यक्तित्वका परिचय मिलता है 1 पात्रोंके घूमने-फिरने, , उठने-बैठने आदि कार्य एवं भाव-भंगिमा, मुद्रा आदि भी घटनाओं एवं _ भावनाओंकों प्रकट करनेक॑ बहुत बड़े साधन हैं । फिल्‍मोमें तो ये साधन बड़े हीं प्रभावशाली होते हे । रेडियो-नाटकोमें इन सभी साधनोंका अभाव है। यहाँ इन सबकी पुत्ति श्रव्य साथनोसे ही करनी पड़ती, है । इनके अति- रिक्त रंगमंच तथा सिनेमाके बहुत-गे नाटकोकी शातिमें भी व्यजना होती है। भासेके नाटकोंके संबंधम एक अग्रेम आलोचकने लिखा है--1० 5110४ &छुह८७*. (इसका मौन भी बोलता है) । इसका अनुभव हमें उन फिल्मोंकों भी देखते समय हमेशा ही होता है, जिनमे बिना किसी कथनोपकथनके कितने चलचित्र आँखोंके सामनेसे निकल जाते है । घट- नाओंकी गति एवं भावनाओकी अभिव्यक्ति वहाँ केवल दृश्यों, पात्रोंकी मुद्दाओं तथा पृष्ठभूमि-सगीलकें द्वारा ही स्पष्ट हो जाती है । रेडियो-नाटक- के लिए यह असभव है, क्योंकि इसमें दृष्य साधन है ही नहीं । रंगमंचके नाटकोंमे और भी अनेक सुविधाएँ है । वहाँ एक ही दृष्यमें रंगमंघपर कई पात्र आ सकते हे, पर दर्शकोंको उन्हें पहचाननेमे कोई कठि- नाई नहीं होगी । दर्शक यह भी हसेगा देखते और समझते रहते हूं कि कौन पात्र कब रंगमचसे बाहर गया और कब रगमचपर लौटा । इन क्रियाओंकों दब्दोमे व्यक्त करनेकी आवश्यकता नहीं होती । रेडियो-नाटकोंमें यदि इन बातोंपर ध्यान न दिया जाय, तो श्रोताओके लिए उन्हे समझना ही असभव हो जाय ! एक और दृष्टिसे देग्वे, तो ज्ञात होगा कि रेडियो-नाटककी कला कितनी कठिन है । लोग रगमचके नाटक देखने अपनी इच्छासे जाते हूं, पैसे खर्च करते हे और तब नाटक देखने बेठते हें । चंकि सब लोग अपने पैसोंका पूरा




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