रेडियो नाट्य शिल्प | Radio Natya Shilp
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
175
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री सिद्धनायकुमार - Shri Siddhanayakumar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्र रेडियो-नाटय-दिल्प
व्यक्तिके अनेक साधन है । रंगमंच-नाटकोंमें वातावरण एवं. परिस्थितियों
को सूचित करनेवाले दु्थ्योका उल्लेख करना पड़ता है । रंगमंचपर कामम
आनेबाली वस्तुओका भी निदेश रहता हैं। पात्रोंकी रूप-रेखा, अवस्था,
शारीरिक गठन, वस्त्रविन्यास, अस्त्र-शस्त्र, अलंकार आदि द्वारा उनके
देश, काल एवं व्यक्तित्वका परिचय मिलता है 1 पात्रोंके घूमने-फिरने, ,
उठने-बैठने आदि कार्य एवं भाव-भंगिमा, मुद्रा आदि भी घटनाओं एवं _
भावनाओंकों प्रकट करनेक॑ बहुत बड़े साधन हैं । फिल्मोमें तो ये साधन
बड़े हीं प्रभावशाली होते हे । रेडियो-नाटकोमें इन सभी साधनोंका अभाव
है। यहाँ इन सबकी पुत्ति श्रव्य साथनोसे ही करनी पड़ती, है । इनके अति-
रिक्त रंगमंच तथा सिनेमाके बहुत-गे नाटकोकी शातिमें भी व्यजना होती
है। भासेके नाटकोंके संबंधम एक अग्रेम आलोचकने लिखा है--1०
5110४ &छुह८७*. (इसका मौन भी बोलता है) । इसका अनुभव
हमें उन फिल्मोंकों भी देखते समय हमेशा ही होता है, जिनमे बिना किसी
कथनोपकथनके कितने चलचित्र आँखोंके सामनेसे निकल जाते है । घट-
नाओंकी गति एवं भावनाओकी अभिव्यक्ति वहाँ केवल दृश्यों, पात्रोंकी
मुद्दाओं तथा पृष्ठभूमि-सगीलकें द्वारा ही स्पष्ट हो जाती है । रेडियो-नाटक-
के लिए यह असभव है, क्योंकि इसमें दृष्य साधन है ही नहीं ।
रंगमंचके नाटकोंमे और भी अनेक सुविधाएँ है । वहाँ एक ही दृष्यमें
रंगमंघपर कई पात्र आ सकते हे, पर दर्शकोंको उन्हें पहचाननेमे कोई कठि-
नाई नहीं होगी । दर्शक यह भी हसेगा देखते और समझते रहते हूं कि कौन
पात्र कब रंगमचसे बाहर गया और कब रगमचपर लौटा । इन क्रियाओंकों
दब्दोमे व्यक्त करनेकी आवश्यकता नहीं होती । रेडियो-नाटकोंमें यदि
इन बातोंपर ध्यान न दिया जाय, तो श्रोताओके लिए उन्हे समझना ही
असभव हो जाय !
एक और दृष्टिसे देग्वे, तो ज्ञात होगा कि रेडियो-नाटककी कला कितनी
कठिन है । लोग रगमचके नाटक देखने अपनी इच्छासे जाते हूं, पैसे खर्च
करते हे और तब नाटक देखने बेठते हें । चंकि सब लोग अपने पैसोंका पूरा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...