देवी वीरा | Devi Veera

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वीरा फिगनर-Veer Fignar

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सुरेन्द्र शर्मा - Surendra Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| | । हे पा मं पि | 0 ्ि शर सशख्र क्रान्ति के द्वारा जारशाही का छन्त कर, रूस में साम्यवाद की मित्ति पर, एक ऐसी प्रजातंत्र शासन प्रयाली स्थापित करने के लिए था, जिसमें साधारण से साधारण श्मादमी का भाग रहे, और जिसकी छुत्र-छाया में सर्वश्र स्वतत्रता; समता, न्याय, घन्वुत्त्व, प्रेम ौर मानवीयता के समान अधिकारों की विजय दुग्दुभी चज उठे । बस, सत्तेप में, 'देवी बीरा' की आत्मकथा फे साथ इस पुस्तक की शस कहासी का यही शाधार है। इस पुस्तक की मूल लेखिका देवी वीराफिगनर का नाम रूस के प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों मे वडे झादर के साथ लिया जाता है। यौवनकाल ही से अपने देश के श्यात्मोद्धार के लिए उन्होंने क्राम्तिकारी 'आन्दोलन में खुलकर भाग लिया । इस काम के लिए उन्होंने व्यक्तिगत सम्बन्ध, सुख्ब, स्वाथे, पारियारिक बन्थन आदि सभी माह पाशो के ताडकर सदा के लिए घालाए-ताफ रख दिया! इन सब बातों से ऊपर उठ कर उन्होंने देश-सेवा की चविय्र बेदी पर '्पना सम्पूर्ण जीवन ही उत्सर्ग कर दिया । कान्तिकारी 'आान्दोलन में भाग लेने और सशख्र विद्रोह सडा करके जारशाही के रूस की भूमि से उसाड फेंकने के उद्योग में देवी दीर? को फांसी की सजा का हु्स हुआ ! लिल्तु वाद में यह सजा चदल कर उन्हे छाजीवन कालेपानी का दण्ड दिया गया । अपने योचन-काल में कितनी सरगर्मी से उन्होंने क्रान्तिकारी श्ान्दोलन में योग दिया, और फिर, २० वर्ष तक जेलों की श्डे




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