गोरा | Goraa

Goraa by रवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravendranath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ गोरा गोरा--कहां बहुत हो गया कुछ मी नहीं छुआ हमने औसत ब्यौर मर्द को उनकी श्पनी जगह पर खूब सहज भाव से देखना नहीं सीखा इसीलिए दम लोगों ने कुछ कविंत्व जमा कर लिया है । विनय--श्रच्छा मैं मानता हूँ कि स्त्री पुरुष का सम्बन्ध ठीक जिस जगदद पर रहने से सहल हो सकता उस सीमा को. हम प्रदृत्ति की भरेंक में नांघ जाते हैं और उसे मिथ्या कर डालते हैं किन्ठु यह अपराध क्या केवल विदेश ही का है १? इस सम्बन्ध में रैंगरेजों का क्वित्व अगर मिथ्या है तो हम लोग जो यह कामिनी-काचंन के त्याग की बात ले. कर सदा बढ बढ कर बातें मारते हैं वह भी तो मिथ्या ही है मनुष्य की प्रकृति जिसे लेकर सहज ही अ्रात्मविस्दत हो जाती है उसके हाथ से मनुष्य को बचाने के लिए कोई तो प्रेम के सौन्दर्य अ्ंशको ही कवित्व के द्वारा उज्ज्वल कर देता है उसके डरे श्रंश को लजा देता है झोर कोई उसके घुरे अंश या पहलू को ही बड़ा बनाकर कामिनी-काचंन-त्याग की व्यवस्था देता है । ये दोनों केवल दो भिन्न प्रकृतियों के लोगों की भिन्न प्रकार की ग्रशालियां हैं । एक की अगर निन्दा करते हो तो दूसरी के साथ भी रियावत करने से काम नहीं चलेगा । गोरा--ना मेंने ठमकों गलत समभा था । तुम्हारी हालत अभी वैसी खराब नहीं हुई है । जबकि भी तक फिलासफी तम्हारे मस्तिष्क के भीतर मोजूद है तब तुम निम य हो कर लव प्रेम कर सकते हो । लेकिन हितेपी बन्ुश्रों का यही श्रतुरोध है कि समय रहते आपने को संभाल लेना । विनय ने व्यस्त होकर कहा--दाः तुम क्या पागल हो गये हो ? मैं किए उप है ाएगिय प्रमोट दिए २ प्रेम घर ग् व बा नि ध बनाए करनी नी हटा ट्ु कि परेश या गा सु दा ४ झड़ कया लक सिर न लि... 2 व जा श याद के पारवबार का जा कद पा ट उनके न जौ | लो लि पके मन थक. सै डी उसस ञ्चय ला पी पक अति मेरे रा स्तर टन उत्पन्न हे जानने व... बन हो गई हू | जान पड़ता हैं इसी से यह जानने के लिए. सेरे हृदय पक गए. ाकषण न उनसे भय कर से पक का उत्पन्न हा गया था पके उनके घुर के मुतिर




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