युवराज [बदलते कश्मीर की कहानी ] | Yuvraj [ Badalte Kashmir Ki Kahani ]

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Yuvraj [ Badalte Kashmir Ki Kahani ] by कर्ण सिंह -Karn Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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युवराज बदलते कश्मीर की कहानी 17 मे मेरे भावी जीवन के बीसियी साल लग जाएगे। पुरानी पीसी पड रही फाइल। को देखने से मुख्े पता चला कि मेरे बचपन के जितने घामिक संस्कार किए गए, उनमे बारीक से वारीक बात पर पुरा ध्यान दिया गया । यह पिताजी की स्वभावगत विशेषता थी । कायक्रम खूब साफ सुथरे छ पाए जाते और छोटी से छोटी हर बात उनमे स्पप्ट रुप से दर्शाई जाती । अत प्राशन (प्रथम बार अन प्रहण करना) 8 फरवरी 1932 को और मुडन 7 दिसम्बर 1933 को हुआ । सन 1947 तक प्रत्येव वर्ष मेरे जमदिवस को साबंजमिंक अवकाश माना जाता था, सभी क्लो से 17 वदूको की सलामी दागी जाती, शिकार करना, मछली पकडना भौर जानवर मारना वर्जित होते, कदियो को रिह्दा किया जाता, गरीबों को भीख दी जाती और श्रीनगर तथा जम्मू के सभी महलो और सावजनिक इमारतों मे रोशनी की जाती । धामिक समारोह मनाए जाते, जहा मुर्भ ले जाया जाता भीर मेरे पिता, मा और भय सम्बधी बहा उपस्थित होते । पिछली बातो में जो मेरी स्मृति में सबसे पहले आती है, वहे यह दि जम्मू में हमारा जी छोटा महल है--अमर महल --गौर जिसमें अब एक सप्रहालय गौर पुस्तकालय है, उसके बाहर आवाश में मैं निहार रहा हू और कोई मुक्ते उडती हुई एक चील दिखा रहा है, जो आकाश की अनत नीली विशालता में एक छोटे काले बिंदु जेसी लग रही है । इसके बात एक और विचित्र, किंतु रपष्ट स्मति जो मुझे है, वह उसी परिसर की एक छोटी इमारत के शीशे में अपनी ही शक्ल देखने की, मानों मैं स्वय को पहली वार देख रहा होऊ। तीन वष की अवस्था होने पर मुभ्े अपनी मा से अलग कर दिया गया और मेरे लिए गर्मी के दिनों मे श्रीनगर मे और ठड की ऋतु में अलग-अलग घरी मे रहने की स्वतत्र व्यवस्था कर दी गई । मुफे अपनी मा से प्रतिदिन केवल एक घटे के लिए भीर पिता से सप्ताह में तीन बार मिलने की अनुमति थी । जाहिर है कि यह कोई आदर्श पारिवारिक वातावरण नही था भौर इसकी वजह थी मेरे माता पिता के वीच गहरा मतभेत होना । मेरी मा कागडा के एक गाव की लडकी थी, मेरे पिता हिंदुस्तान के पाच सौ से अधिक देशी राज्यो सबसे बडे राज्य के राजा थे। मरी मा गहरी घर्मिष्ठ थी, मेरे पिता अपने जीवन के अत तक वस्तुत नास्तिक बने रहे। मेरी मा भावनामय, समाजप्रिय और बालकों के प्रति स्नेहशील थी, मेरे पिंता सख्त, कठोर और सतकतापूर्वक चुने गए दरवारियो और चद दोस्तो की मडली की सोहवबत मे ही उठते-बठते थे । मेरी मा बातचीत म पटु थी, मेरे पिता का आतक इतना था कि उनकी उपस्थिति में साधारण बातचीत वस्तुत असभव थी । मेरी मा अधघविश्वासी, अपने भावों को प्रदशित करने वाली और सवेदनशील थी, मेरे पिता चुस्त-दुरुस्त, सूक्ष्म बौर सतक और अलग थलग रहने वाले यक्ति थे । इस




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