बिहार के नवयुवक हृदय | Bihar Ke Navyuvak Hriday
श्रेणी : नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
354
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( दा. )
“बार बार” की समिन्न २ व्याख्या करने को बीरबल, रहीम,
तानसेन, श्रौर फ़ेजी के समान महान् विद्वान उद्यत होंगे !
क्या गोस्वामी तुलसीदास, शेक्सपियर प्रद्चति ज्ञानते थे कि
उनके काव्यों के इतने भाष्य किये जायँगे और उनके प्रति
पद और शब्द के इतने भाव निकाले जायेगे ?
दा ! पेसा कवि होना सब के भाग में नही होता । किन्तु
सभी उत्तम कवियों की उत्छुष्ट रचनाएँ न्यूनाधिक मन को
प्रभावित कर सकती हैं । श्र जिस कवि की रचना जितनी
ही प्रभावोत्पादिनी होगी पवम्ू उसमें जितनी ही काव्य-
निषुणता पाई जायगी, उतना ही उसका दर्जा ऊँचा होता
जायगा |
इस उद्यान में बहुत से कुश-कंटक भी उग शझाते हैं। वे
तिरस्कार-तरशि के ताप से श्राप छार-खार हो जाते हैं
आजकल यहा तो कवियों का “भेड़िया-घसान” हो रहा'
है। पाठशालाशं से निकलने पर नहीं; चरनत् उसमें प्रवेश
करते ही लोग कविता करने को लेखनी उठाते हैं और उतने
ही पर सन्तोष न करके तुरत ही उसे पत्र-पत्रिकाओं में
प्रकाशित कराने को भी व्यस्त हो जाते है ।
_पहले काव्यशास्त्र के कुछ अध्ययन करने की बात तो दूर
गई, उन्माद्ग्रस्त प्राणी के सद्श बकने लगते हैं कि चत्तमान
पिंगल से बढ़ कर पिगल तो हम लोग सभी बना सकते हैं ।
किन्तु रंग देखने में क्या श्राता है ? कही कोरी तुकबन्दी
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