हिन्दी की आदर्श कहानियाँ | Hindi Ki Aadarasha Kahaniyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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कहानी की उत्पत्ति --मनुप्य सामाजिक प्राणी है । वह '्यपनी कहना
गौर दूसरे की सनना चाहता है । यदि मनप्य में श्यात्माभिव्यज्जन की प्रकृति
न होती तो ्ाज साहित्य का श्यस्तित्व ही न होता--हम क्यों त्तिखत, क्या
लिखते, किसके न्तिए लिखते ? दझ्यात्माभिव्यंतन की प्रवृत्ति ही हमें पना दु:स्-
सुख, राग-द्वेप, श्मादि भावनाएं दूसरों से कहने पर मजबूर करती हैं। 5
दूसरों की इसी त्विए सनते हैं कि वे भावना ए हमें “झात्मीय'-सी लगती हैं ।
दि उनका हमारे जीवन से कोइ न्तगाव न हो ती हम उन्हें कभी न सन ।
यदि श्रोता ही न हो तो वक्ता क्या करेगा ? कहानियों के उत्पत्ति के साथ ही
साहित्य का जन्म हुद्मा होगा, यह निश्चयपूवक कहा जा सकता है, शथवा
घ्प्रादि-साहित्य कहानी ही रहा होगा-यह कहना झधिक उपयुक्त होगा ।
कहानी का सम्बन्ध हमारे निकटतम जीवन से है। विगत का इतिहास
हम कथा या कहानी के ही रूप में स्मरण रखते ्ाये । मनुष्य का जीवन
उसके व्यापार कहानी नहीं तो हैं क्या ? हम जब ध्यपने विगत के न भवों
का वा दूसरों पर बीती घटनाओं का वणंन करने बैठते हैं उस समय दस
कहानी ही कहते है । श्वाज हम गय के विकास के युग में कहानी से एक
विशेष प्रकार की रचना का परिचय देते हें, परन्तु पद्य के युग में समस्त महा-
काव्य, पुराण, वोरकाव्य का ्ाघार कथा वा कहानी ही तो था । जिस
रचना में मानव-व्यापारों का वरान श्ाया--अक्या वह “कहानी' को झात्मा क
बिना जीवित रह सकती है ?
प्राचीन भारत में क नी साहित्य--संसार के समस्त साहित्यों में भार-
तीय साहित्य प्राचीन है । हमार सबंप्राचीन ग्रन्थ वेदों में कहा नियाँ मिन्नती
हैं । एक नहीं ब्नेक कथाएँ वेदों मे भरी पड़ी हैं। एक ऋषि इन्द्र को मानते
हैं, यज्ञ में उनका शाह्लान करते हैं । उन्हें हरे-हरे कोमल कुश पर बेठाते हैं ।
उन्हें सोम रस पिन्नाकर प्रसन्न करते हैं । वृत्रासुर को मारने के हेतु तैयार करते
हैं--झ्रादि्मादि । वेदों में संवाद हैं, चरित्र हैं. ..ये ही तो कहानी के तत्त्व
हैं। मानों वे श्याघुनिक रूप में नहीं--पर बिन्दु रूप में तो कहानी के सभी
तत्त्व प्राचीन वेदों में वतमान हैं ।
सभ्यता के विकास के साध-साथ--सभी वस्तुआ्रों का विक्रास हृथ्भा,
उनकी रूपरखा बदलती गइ । साहित्य भी बदला । संस्कृत काल में कथा-
सादित्य का जोर बढ़ा । कादम्बरी श्योर दशकुमार-चरित, हितोपदेश, पत्चनंत्र
झ्यादि झमर अन्थ इसके प्रमाण हैं ; बोद्धकात्तीन भारत में 'जातक' कथाओं
का प्रचार था । इनका प्रचार तो यहाँ तक बढ़ा कि भारत के समीप के अन्य
देशों में इनका श्रनुवाद हुआ |
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