श्री सूत्रकृतांग सूत्र | Shri Sutrakratang Sutra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
151
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शी ग सूतरहृताण सूध
भावरूपी सस्कार (£) विज्ञान-स्कन्ध --झाख, कान, नाक,
जीम, काया श्वौर सन 3
तने पर भी थे सब बा जोर देकर कहते हैं कि, “गुदरथ
वानम्रंस्य या. संन्यासी जो दसारे सिद्धान्त की. शरण लैगा, यह,
दुग्खों से छूट जावेगा । ” [4
में लुफे कहता हू कि इन बादियों को सत्य ज्ञान का पता नहीं
है श्र न उन्हें धर्म का भान ही है। शभ्रतएव थे इस ससार सागर
को पार नहीं कर सकते, श्र जरा मरण-व्याधिपूयी संसारचक्र में
इोलते हुए दुब भोगते ही रहते हैं। शातपुन जिनेधर महावीर में
कहा है कि ये सब लोग ऊच-नीच योनियों में भदकते हुए श्रनेक
थार जन्म लेंगे श्रौर मरेंगे। [२०-२३]
(र)
कितने ही दूसरे जानने योग्य मिव्या वाद शुके कइता हूं। रैव
को सानने वाले कुछ नियतिवादी कहते हैं, जीव हैं, उन्हें सुख
दुख का धनुभय होता है, तथा वे झन्त में श्पने स्थान से नाश
को प्राप्त होते हैं। इसको सब सान लेंगे। जो सुग्स्डु'साधिक हैं, थे
जीव वे स्वयं के किये हुए नहीं हैं-ये तो दैवनियत हैं।” इस
म्रवार ऐसी बातें कद कर ये श्रपने को प़ित मान कर दूसरी श्रनेक
'ऋष्ट कल्पनाएं करते हैं, श्र उनके श्रनुसार उन्मार्गी श्याचरण करके,
टुग्बो से छूट हो नहीं सकते। इन धर्मडी लोगों को इतना सक
ज्ञान नहीं है कि सुगदुसमें धव थी भाति घुरपाथ भी सम्मिलित
होता है। [शी
दिव्यको-पूर हत्त शुमाशम कमीं का उदय व (भाग्य) होता है,
पर पुरपार्य से नवीन कर्म करके उन शुभाशुभ कीं या उदध
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