मनोरंजन पुस्तकमाला -२४ आत्मा शिक्षण | Manoranjan Pustakmala-24 Aatma Shikshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( श३ ) मुख्यता से रददा, झौर तत्संवंधी नियमों पर विचार इुझ्ा । बव हम सभ्यता संबंधी नियमों को शोर अपने प्रिय पाठकों का ध्यान श्ाकर्षपित करते हैं । प्रति श्पने ही शरोर को पाल्‍्य मानती है, कितु सभ्यता अन्य शरोर की ओर भी चैसा दी चिचार श्रेयस्कर समभकती है, यहाँ तक कि श्रत्युद्ध सभ्यता घन्य शरीरों को झपने शरार से श्रष्टतर मानती है । जिस मजुप्य द्वारा सभ्यता बिपयक जितने नियमों का परि- पोषण द्ोना है, बह उतना ही परोपकारों एव खुकर्म्मी समझा जायगा | संसार में परापकार संवंधी इतने कार्य्य हैं कि बिना नियम स्थिर फिप एक मनुष्य बी शक्ति झनेक!नेक कर्तव्यों में फैल कर उनमें से प्रत्येक के लिये इतनो लघु दो जायगो, कि उसका हेानां ल हेना बराबर हो जायगा। इसी लिये प्रवीण पुरुपों ने श्रान्ना दी है कि प्रत्येक मनुष्य का एक पक जीवनादेश्य स्थिर कर लेना चाहिए । यह लदय छापने सामथ्ये पच परोापकारिणी चाणि के दृढदताजु छार देगा, किंतु प्रत्येक विचारवान व्यक्ति को काई न दाई लदय रखना झवश्य चाहिए । संसार में मनुष्य को घनप्राप्ति, झम, प्रतिश्र्द और चारी से दे।ती दे । इन शब्दों के परम विस्तृत झथे लेने से यदद कथन यथाथं समझ पड़ेगा झन्यथा नद्दीं । दाय में घन- आतति भी पक प्रकार का दान लेना का जा सकता है। इसरो मॉति स्वामी की इच्छा के प्रतिकूल उचित श्रम छोड़ झन्य किसी भी रीति से धनापदरण चौर कम्मे हे, यह सभी 'थम्मोंपदेशकों ने कहा है। महात्मा मनु और दज़रत सूखा, इन दोनों ने अपने शझपने झजुधायियों के लिये दस दस शआशाएं छाड़ी दें । इन दाना मद्दात्माधयों ने चेएरी का उचित




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