चतुर्विशति-जिनेन्द्र-स्तवननि | Chaturvishati-jinender-stavanani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
46
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)-अपुनेभव नगर प्रजिगमिषो, ' रघुंना- जिन बंधः्वर हे १०
रक न फ़रै
« सिद्धाथा: झुम कश्चिते! युक्त, मुक्ता फल इनिजन सुंदर है.।
गन: अेदेशान्तर समयान्तर, ख स्परशोयन ममलतर हैः।।
के. की जय: जय विश्व जनेश्वर है ।। ११८4...
:. मिध्यात्वादि कुंपथविधाना, दनिशघुत्तमाग्रेसर हू 1 ८:
_ 'बद्धित घन घन .घाति -कमेगण; तिमिर रुजवरणेतर हे :।।
जय .जय विश्व जनश्वर है ॥: १९ ॥
. छोकांलोक विलोकने. केचछ़, चिददशन नयनेषर हे. ।
.. मम करुणोप॑धि परम रसांजन,: विंधिनोद -घाटय,काकर, हे ॥
. 'जयः:जय. विश्व जनेग्वर हैं 0, डे. ॥. सप्तामि/सस्वन्घा,
विद बदन, दिवंचन्द्रानेदित,. भक्त चकोर विपत्सर, हे. |
: “प्रश्नमिते .दुरिभ-ताप विजितासत,..मघुरिम ज्परस सांगर दे
रह जय. जय. विश्व :जनेश्वर हे ॥॥.' २४:.॥
कि दूर वर » ( कलदा:. 7)
की कल संक्रठें: ठोकालोक लोकन चिपल ' केचल:लोचन
7... आनन्दघन . पद कंदजलदोयपहित चनविरो चनः
'. <संवरज इत्थ मु्दों -वाचक पुण्यशील .गणि स्तुतेर, ....
संभवत भूरि विभ्ूतये भवतामनन्त मंहोयुतः 1१५
५--आ्रा सुमात 1जनन्द्र स्तवः |
_(:मीत पद्धति सारंगरागस्वराजुसारि-सुखि चतुर सुजाण पर-
नारी खु प्रीत दीकंबहु न कीजिये. अंनया गरबा- ....
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