कसाय पाहुड़ सुत्त | Ksaya Pahuda Suta

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Ksaya Pahuda Suta by पं. हीरालाल जैन सिद्धान्त शास्त्री - Pt. Hiralal Jain Siddhant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना श झग्गेणीयपुव्वाओओ, तस्स वि पंचमवत्थूउ, तस्स वि वीसपाहुड परिमाणस्स कम्मपग- डिशामधेज्जं चउत्थ॑ पाहुडं, तझो नीशियं, चउवीसाणुझोगद्दारमइयमहणणवस्सेव एगो बिंदू । ( सित्तरी चुण्णी प्र० र ) ८ अर्थात्‌ बारहवें दृष्टिवाद झंगके दूसरे अ्म्रायणीय पूर्वकी पंचमवस्तुके अन्तर्गत जो चौथा कमंग्रकृतिप्राशत है, और जिसमें कि चौबीस अनुयोगद्वार हैं, उनका यह प्रकरण एक बिन्दुमात्र है । इसी प्रकार दिन पर दिन विलुप्त या विच्छिन्न होते हुए महाकम्मपयडिपाहुडका आश्रय लेकर छुक्खंडागम और कम्मपयडीकी रचना की गई है। इन दोनोंमें श्रन्तर यह है कि कम्मपयडीकी रचना गाथाओंमें हुई है, जबकि छक्खंडागमकी रचना गद्यसूत्रोंमें हुई है । कम्मपयडीके चूर्णिकार प्रन्थके आारम्भमें लिखते हैं-- दुस्समाबलेश खीयमाशमेहाउसद्धासंवेग-उज्जमारंभ॑भ्रज्जकालियं साइजणं अणुर्घेत्तका मेण विच्छिनलकम्मपयडिमहागंधत्थसंबोहणत्थ॑ श्रारद्धं झायरिएशं तम्गुण- णामगं कम्मपयडीसंगहणी खाम पगरणं । ( कम्मपयडी पत्र १ ) अर्थात्‌ इस दु:षमा कालके बलसे दिन पर दिन क्षीण हो रही है बुद्धि, आयु, भ्रद्धादिक जिनको ऐसे ऐदंयुगीन साधुजनोंके 'अनुप्रहकी इच्छासे विच्छिन्न होते हुए कम्मपयडिनामक महाप्रन्थके अर्थ-संबोघ नाथ प्रस्तुत श्रन्थके रचयिता श्राचायने यथाथे गुणवाला यह कम्मपयडी संग्रहदणी नामक प्रकरण रचा है । पट्खंडागमकी र'्वनाका कारण बतलाते हुए घवलाटीकामें लिखा दे कि-- >६ ६ > महाकर्मपयडि पाहुडस्स बोच्छेदो होहदि नि समुष्पण्णवुद्धिशा पुणो दब्वपमाणाणुगममादिं काऊण गंथरचणा कदा । (घवला पु० १ प्र० ७१) इस प्रकार हम देखते हैं कि दिन पर दिन होते हुए श्रुतविच्छेदको देखकर हो श्रुतरक्षा- की दृष्टि से उक्त प्रन्थोंकी रचना की गई हे । षट्खंडागम, कर्मपयडी, सतक छोर सित्तरी, इन चारों प्रन्थोंकी रचनाके साथ जब हम कसायपाहुडकी रचनाका मिलान करते हैं, तो इसमें हमें नेक विशेषतएं दृष्टिगोचर होती हैं-- पहली विशेषता यह है कि जब पट्खंडागम श्मादि प्रन्थोंके प्रयोताश्भोंको उक्त प्रन्थोकी उत्पत्तिके झाघारभूत महाकस्मपयडिपाहुडका 'ांशिक ही ज्ञान प्राप्त था, तब कसायपाहुडकारको पांचवें पूर्वकी दशवीं वस्तुकें तीसरे पेज्जदोसपाहुडका परिपूर्ण ज्ञान प्राप्त था । दूसरी विशेषता यह दै कि कसायपाहुडकी रचना '्रति संक्षिप्त होते हुए भी एक सुसम्बद्ध क्रमको लिए है श्ौर ग्रन्थकें प्रारम्भमें ही प्रन्थ-गत अधिकारोंके निर्देशके साथ प्रत्येक 'अधिकार-गत गाधाझोंका भी उल्लेख किया गया है । पर यह वात हमें पट्खंडागमादि किसी भी छान्य प्रन्थमें दृष्टिगोचर नहीं होती है । ग्रन्थके प्रारम्भमें मंगलाचरणका श्रीर श्न्तमें उपसंहारात्मक वाक्योंका 'झभाव भी कसायपाहुडकी एक विशेषता है । जबकि कम्मपयडी, सतक श्र सित्तरीकार 'झाचाये अपने 'झपने प्रन्थोंके श्वादिमें मंगलाचरण कर झन्तमें यह स्पष्ट उल्लेख करते हुए हृष्टिगोचर होते हैं




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