विशिष्ट साहित्यिक निबन्ध | Vishist Sahityk Nibandh

1010/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vishist Sahityk Nibandh by राजनाथ शर्मा - Rajnath Sharma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राजनाथ शर्मा - Rajnath Sharma

Add Infomation AboutRajnath Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
२. विशिष्ट साहित्यिक-निबन्ध की आओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया था । उन्होंन सन्‌ १९५२ में “नई कविता शीर्षक में एक ध्वनि-दातता इलाहाबाद से प्रसारित की थी । यह ध्वनि-बार्ता इसी णीर्षक के साथ नए फ्ते' नामक सासिक पत्रिका में सच १९४५३ के आरम्भ में प्रकाशित हुई थी । इसके एक बंप बाद ही डा० जगदीश गुप्त ने नई कविता शीपेक के शाथ नई प्योगवादी कविताओं का एक संकलन प्रकाशित किया था ! इसके कई और संकलन भी भागामी कुछ ब्षों में झकाशित होते रहें थे । 'नई कविता नमक इस शीपक का बश्रयोग करने के कारण लोगों की यह धारणा बत गई थी कि 'प्रयोगवार' ही निई कविता है । इसलिए प्रयोगवाद से चिढें हुए आलोचर्कों ने इस नई कविता की भी बख्खिया उधेड़नी आरम्भ कर दी । इससे यह झस और अध्रिय फैला कि प्रयोगवाद ही नई कविता का बाला धारण कर अपने हाथ- पॉच झलादे का नया प्रयास कर रहा है । अतः 'नई कविता” शब्द सपेक्षा का पात्र यन मया | आये चलकर हिंग्दी के अनेक सुधी मालोचकों ने “नई कनिता' शब्द की सई च्णाल्या करने हुए कहा कि 'तई कविता के अन्तर्गत उन सारी काव्य-कृतियों को सम्मिलित कर लिया जाना चाहिए जो देश की आजादी के बाद से लिखी जाती रही हैं | इस मम्वस्थ में उनका कहना हैं कि आजादी के वाद, विशेष रूप से सतु १६४० के आसपास से, ड्रिन्दी की जो कविता लिखी जाती रही है, उसमें किसी वाद-विशेष का प्राधान्य न रह कर, उससे पूव तथा समकालीन प्रचलित विचारधाराओं और काव्य- पद्धच्यों के मिले-जुले रूप ही अधिक उभरे हैं । उसमें शुभ-अशुभ, व्यक्तिवादी- समाजवादी आदि सभी प्रकार की कविताओं के सानाविधि-रूप मिल जाते हैं । यह हित्दी की कविता का एक ऐसा नया रूप है जों एक ओर तो परम्परा से अपना सम्पर्क दनाए हैं और दूसरी ओर परम्परा को सकारता भी रहा है । उसमें सामयिंक उणान भी आता रहा है अँर वह गम्भीरता भी धारण करती चली है। उसमे छायाब्रादी, प्रभतिवादी. प्रयोगवादी, अस्तित्वदादी, नकारवादी आदि विभिन्न प्रबुत्तियों अपने पुराने तथा नए दोनों रूपों में उभरती रही हैं ! उसमे मुक्तककाव्य, प्रबन्धकाव्य' तथा सीतिकाव्य सभी कुछ लिखा जाता रहा हैं और आज थी लिखा जा रहा है । समण्टि रुप से 'नई कविता उसे कहा जा सकता है जो सन्‌ १६५० से लेकर आज तक लिखी जाती रही है । वह अपनी पुर्ववर्ती विभिन्न काव्यघाराओं से इस अर्थ में भिन्न हैं कि यह कविता संश्लेपण और सामंजस्य की कविता है, न कि इन्द्र और विरोध की । एक ही कवि कभी-कभी व्यक्तिवादी और समाजवादी, दोनों ही प्रकार की करनिताएं लिखता है और बहुत सुन्दर लिखता है । दोनी में बनावट ने होकर यधाथ अभिव्यक्ति का सुन्दर रूप सिलता है ! इसी कारण आजादी के बाद लिखी जा रही हिन्दी-कबविता को वादों में विभाजित कर नहीं देखा जा सकता । उसके केवन दो ही रूप मिलते हूैँ--ज्यक्तिवादी भर समाजवादी ।




User Reviews

  • Tanya Sharma

    at 2022-08-18 20:15:17
    Rated : 10 out of 10 stars.
    This is my late grandfather's book
Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now