निबंध संग्रह | Niband Sangrh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका 9,
जात खड़ी बोली पैं कोऊ भयौ दिवानी ।
कोड तुकांत वि पद्य लिखन मैं है दरुकानी ।
उनुप्रास-प्रतिबंध कठिन जिनके उर माही ।
स्यागि पद्य-प्रतिबन्धहु लिखत गद्य क्यों नादीं ।
अनुप्रास कहूँ न सुकवि की सक्ति घटावें |
चरु सच पूछो तो नव सूक हियें उपजावें ।
ब्रजमापा री अ्नुप्रातस जिन लेखें फीके |
माँगईिं त्रिंघना सौं ते श्रवन मानुपी नीके ।
दम इन लोगनि दंत सारद सौ चददत विनय करि।
काहू विधि इनके दिय को दुर्गति दीले दरि ॥ इत्यादि
यह कवित्ता नहीं निवन्ध हैं केवल इसका श्रावरण पदथयबद्ध है (जेसे कोई
पुरुष नाटक में स्त्री का झमिनय करता दो) । इसी प्रकार महदावीरप्रसाद द्विवेदी
के श्रनेक पद्य निन्व मात्र हैं । कलकत्ता के दूतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन
के सभापति बदुरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' ने श्रपने सभापतित्व के विस्चूत
भापण में श्रपनी “शानन्दू बघाई” शीपेक लम्बी कविता सुनाई थी, यह कविता
चास्तव में एक निबन्ध ही है । कविता बहुत लम्बी है, फिर भी इसका कुछ
'ग्रंश उद्छत करें देना छावश्यक प्रतीत होता हैं :
वे भागनि सों जब भारत के सुख दिन द्ाए ।
ँगरेज़ी झ्धिकार अमित अन्याय नसाए ।
लददधो न्याय सब ही छीने निज स्वत्वह्िं पाई ।
दुरभागनि बचि रही यही अन्याय सताई |
लद्यो देस भापा श्धिकार सच निज देशन |
राज काज श्रालय विद्यालय बीच ततच्छन ।
थे इत विरचि नाम उदूँ को हिन्दुस्तानी ।
रबी बरनहुँ लिखत सके नहिं बुध पहिचानी |
,'दिन्दुस्तानी” भापा कौन ? कहाँ तैं द्ाई ?
को भापत किद्दि ठौर कोऊ किन देह चताईं ।
कोउ साइव खपुष्प सम नाम धरवों मनमानो |
दोत बड़ेन सो यूलहु बड़ी सदज यदद जानो |
दरि हिन्दी की वोली रु अच्छर धिकारदिं ।
« हैं पैठारे बीच कचदरी बिना विचारहिं ॥
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