वैज्ञानिक परिभाषा कोश | Vaighanik Pribhasha Kosh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Vaighanik Pribhasha Kosh by डॉ.बदरीनाथ कपूर - Dr. Badarinath Kapoor

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ.बदरीनाथ कपूर - Dr. Badarinath Kapoor

Add Infomation About. Dr. Badarinath Kapoor

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अमसार्ण झादि येलों में बुछ सिलाड़ियों में से हर एक जो भागे को भर्षात्‌ प्रयम पंक्ति में रहते हैं। फ्ण््सएपु अपसारण - पुर प्रशासनिक क्षेत्र में, भागे की भोर दाता ।.. [ए०एवाताफ न टिप्पणी दणिभवा एप 0010 रन पत्र हरणफार010ु 16((८1 अप्रसारित --वि० प्रधासनिया दोत्र में, भागे की घोर दड़ाया हुमा । [०रुूसठ८ण] अपांश-अपु० सगोल में, क्षितिज में ठोक पूर्व झभौर ठीक पश्यिम के थे दिंदु जहाँ से सगोलीय पिंड उदित भौर भरत होते हैं । [र्फंध्ण्वड्ा 'प्रिम--वि० समय के विचार से भागे या पहने होनेवाला । [ ठैठेश्व८्७ 3 न प्रति 2१2८८ ८009 कक भुगतान 2त0४81106 प्रा, अधोर-पंथ--पु० सामाजिक भोर धामिक क्षेत्री में, एक भारतीय सम्प्रदाय जो लोक- बाहा घाचरणों को भ्पनो साथना का झाघार मानता तथा तंत्र-मंत्र, हठ-पोग झोर इमशान-फ्रिया के द्वारा विशेष शक्ति प्राप्त करने में विश्वास करता है । अधोपष --पु० भाषा विज्ञान में, (व्यंजन वर्ण) जिसके उच्चारण के समय स्वर-तंघरियाँ एक दूसरे से दूर रहती हैं, तया उनमें कंपन नहीं होता; जैसे-न, जू, चु,.छू भ्रादि! हु ८९55] अधघोपीकरण---पु० भापा विज्ञान में, सघोप वर्ण का श्रघोष वर्ण में परिवर्तन होने का नियम 1 [0०४०८शांटिकपंणात सन्ाणता--ख्री० चिकित्सा शास्त्र मे; एक रोग जिसमें श्रादमी में सूंधने को दाक्ति नष्ट |ज अल्लेयवाद हो जाती है । [औैण०्छाणांव] अचल परिसंपत्ति-ख्री० वाशिज्य में, व्यापार के दैनिक परिचालन के लिए क्रय की हुई परिसंपत्ति । जैसे--मुमि, भवन, मशीन, फर्मीचर भादि । [पड ०ते 25505] अचालठक-+पु० भौतिक दाख्र में, ऐसी कापा या पिंड जिसमें दिजली को धारा ने गुजर सकती हो । [िडिणेण] अचेदन मानस--पु० मनोविज्ञान में, मानस के दो पक्षों में से एक जिसका निर्माण ऐसी दमित वासनामों के फलस्वरूप होता है जिनकी हृप्ति सामाजिक जीवन में भसम्भव होती है भोर जो मानम के दूसरे पक् (चेतन मानस) से कही धधिक विस्तृत भौर शक्ति- दाती है 1 [एघ्००ण5८०७५ शत] 'मजल--पिं० रसायन शासन में, जिसमें जल का जरा भी भंग न हो । [औैफ्ता०ए5] न ईपर थपा्ठा005 € 67 अजीव जनन--पु० णोव विज्ञान में, ग्रह विचारधारा कि झनीव पदार्ष से जीवों का जन्म दोता है । [कैणं०्डब्ण्ष्घंड अजीव-जनिक--पि० जीव यिज्ञान में, चह जीव जिसका जन्म किसी झयीव पदार्थ से हुमा हो । [5 ं०वएटपंट] अद्येयवाद--पु० पाइचात्य दर्शन में, यह सिद्धात कि झात्मा, परमात्मा प्रौर परम .« परेंव भज्ञेय हैं मोर उनका ठीक-ठीक ज्ञान न तो ध्रभी तक किसी को प्राप्त हो सका है श्रीर न भागे हो सकेगा । इस सिद्धांत की मुख्य मान्यता यह हैं कि किसी विपय का इंद्रियों के द्वारा हमें जो ज्ञान हे. * बह अधूरा ही होता है भय उस 2 7... रह हक




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now