निबंध रत्नमाला | Nibhandh Ratnmala
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पवित्रता ।
उचित हैं।
जा स्री मायाचार रखती हें, हर बात को पत्ि-पुन्नादि
से छिपाती है और दूसरे कुदुस्वियों से ईंष्यां, द्वंघ करती है
चद्द पवित्र हृदय की भागी नहीं है। ऐसा न कर अपना
मन स्वच्छता की थोर खींच कर निमंल रखना चाहिये ।
समय पर माजन, समय पर पान, यथासमय पर सें
कायय कर बचे समय फे परापकार के विचार में और
उपाय में लगाना चाहिए। जो मनुष्य घार्मिक तथा परोप-
कारक कार्यो में थोड़ा भी अपना समय लगाकर हृदय को
पचित्र चायु-सेवन करा देते हैं उनका हृदय पथित्र रद
सकता हैं। इसलिए बहिना ! आपस को फूट मिटा
कर एकता का प्रचार करना चाहिये। कुमाजन, रात्रि-
भोजन, या जार का अपवित्र भाजन छोड रुवदस्त से बनाकर
स्वच्छ ऋतु अयुकूल सोजन करना चाहिए । इसी तरद
स्वच्छ चसत्र घारण कर उउश्वल शरीर रख चाहा पवित्रता
पर ध्यान रखना चाहिए ।
यदद पहले कहा जा चुका है कि पवित्रता का संचंघ
एक चात से नहीं है चरन, प्रत्येक कम्म॑ से है। अतः दर
पक क्राम पर 'ध्यान रखना उचित है। जै मे बरतन के माँज
कर पचित्र रखना, जद के कांड कर! पवित्र रखना, सेाजन
को शुद्धता से बना कर पतित्र रखना, इसी तरद घन के
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